Saturday, March 22, 2025

ज्ञान क्या है?

ज्ञान क्या है? What is Knowledge in Hindi

ज्ञान क्या है? ज्ञान शब्द का अर्थ होता है जानना या जान लेना। किसी विषय, वस्तु, समय, घटना आदि की संपूर्ण जानकारी होना उस वस्तु से सम्बंधित ज्ञान कहलाता है। और जिसके जानने के बाद कुछ शेष कुछ ना रहे। ।

ज्ञान क्या है? (What is Knowledge in Hindi)

ज्ञान क्या है? (What is Knowledge in Hindi)

जैसे अगर कोई आपसे पूछता है कि क्या आपको गणित का ज्ञान है ? तब इससे आपको यही बोध होता है कि आपको गणित के विषय में जानकरी है या नहीं।

इस प्रकार स्वयं तथा अपने आस-पास के तत्वों का बोध होना या उसे समझने या जानने की शक्ति ज्ञान है। ज्ञान शब्द दर्शाता है कि हम क्या और कितना जानते हैं।

ज्ञान एक प्रकार की मनोदशा है, यह ज्ञाता के मन में होनेवाली एक तरह की हलचल है। यह वह बौध्दिक अनुभव है जो ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त होता है। यही ज्ञान कहलाता है।

मनुष्य के अंदर पाँच जज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं। ज्ञान ही है जो हमारे मष्तिष्क को विकसित करने का काम करता है। ज्ञान के आधार पर ही हम अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के कार्यों को करते हैं और अपने उस कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ते हैं।

मनुष्य के लिए ज्ञान ही उन्नति, तरक्की, आगे बढ़ने की शक्ति है।  यह अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है। ज्ञान अंतहीन है, ज्ञान अथाह है अनंत है। इसे जितना खोजोगे, या उतना ही आगे बढ़ता जाता है।

ज्ञान का अर्थ Gyan Meaning in Hindi ज्ञान का क्या अर्थ है 

ज्ञान शब्द “ज्ञ” धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है जानना, बोध और अनुभव। किसी भी वस्तु में, जो हमारे आसपास  हो उसके स्वरूप के बारे में अर्थात वह जैसा है, उसके  बारे में जानना, अनुभव या बोध होना उस वस्तु विशेष के बारे में ज्ञान कहलाता है।

आसान भाषा किसी वास्तु विशेष के बारे जानकारी होना ज्ञान है। यानी ज्ञान शब्द किसी विषय या वस्तु आदि के बारे में यथार्थ जानकारी के लिए प्रयुक्त होता है।

ऐसा कहा जा सकता है कि किसी विषय, वस्तु या घटना की सत्यता की जानकारी होना ही ज्ञान है। इसलिए किसी भी विषय वस्तु अथवा घटना के प्रति जागरूकता ही ज्ञान कहलाता है।

ज्ञान की परिभाषा Definition of knowledge in hindi

ज्ञान किसी भी विषय को पूर्ण रूप से समझना, उसका सम्पूर्ण अनुभव करना तथा वक्त आने पर उसका उचित तरीके से प्रयोग करना है । ज्ञान एक विश्वास है जिसे सत्य के रूप में स्वीकार किया गया है। ज्ञान बहुमूल्य रत्नों से भी महँगी वस्तु  मानी जाती है। इसे न कोई चोर चुरा सकता है और न ही इसे बांटा जा सकता है।

ज्ञान ही एक ऐसी वास्तु है जिसके लिए चिंतित नहीं होना पड़ता कि इसे कोई चुरा लेगा क्यूंकि किसी का ज्ञान चुराने के लिए स्वयं के पास ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान को हर प्रकार से अर्जित किया जा सकता है, चाहे सुनकर, देखकर, समझकर,या अनुभवों से हो।

ज्ञान मतलब किसी भी चीज, विषय या वस्तु के बारे में सही व अच्छी जानकारी ही है। ज्ञानी बनने के लिए जरूरी नहीं कि आप के पास कोई बड़ी उपाधियाँ हो या आप महंगे विद्यालयों में पढ़ें।

ज्ञान कभी भी किसी से भी , कहीं से भी प्राप्त हो सकता है, चाहे वो सजीवों से प्राप्त हो या निर्जीवों से। किसी इंसान का सही ज्ञान ही उसे सफलता की मंज़िल तक पहुंचाता है।

ज्ञान एक बौध्दिक अनुभव है, जो हमारे ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त होता है। ज्ञान प्राप्त या ग्रहण करने के लिए विचार, चिंतन, मनन, मंथन और अनुभव की शक्ति की आवश्यकता होती है जो कि हम मनुष्यों के पास होती है।

कई विद्वानों ने ज्ञान को अपने ज्ञान और अनुभव से “ज्ञान क्या है” को परिभाषित करने की कोशिश की है। यहाँ कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा, ज्ञान क्या है, ज्ञान का आधार क्या है, इसके बारे दी गयी परिभाषाएँ इस प्रकार हैं –

  • शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्म को सत्य जानना ज्ञान है और वस्तु जगत को सत्य जानना अज्ञान है।
  • बौद्ध दर्शन के अनुसार जो मनुष्य को सांसारिक दुःखों से छुटकारा दिलाए वो ज्ञान है।
  • प्लेटो के अनुसार विचारो की दैवीय व्यवस्था और आत्मा-परमात्मा के स्वरूप को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
  • हॉब्स के अनुसार ज्ञान ही शक्ति है।
  • सुकरात के अनुसार ज्ञान सर्वोच्च सद्गुण है।
  • वेबस्टर के अनुसार वह जानकारी है जो वास्तविक अनुभव, व्यवहारिक अनुभव और कार्यकुशलता आदि द्वारा प्राप्त होती है।

ज्ञान के प्रकार Types of Knowledge in Hindi ज्ञान कितने प्रकार का होता है?

ज्ञान का सागर तो अथाह है जिसे जितना खोजो वह उतना  ही बढ़ता जाता है, जिसकी कोई  सीमा नहीं है। मनुष्य के ज्ञान को निम्नलिखित तीन विभागों में बाँटा जा सकता है-

1. प्रामाणिक ज्ञान

2. आध्यात्मिक ज्ञान और

3. व्यावहारिक ज्ञान

आइये एक एक करके इसके बारें में संक्षेप में जानते है –

1. प्रामाणिक ज्ञान-

संक्षेप में अगर कहें तो प्रामाणिक ज्ञान को हम विज्ञान या पदार्थ ज्ञान भी कह सकते हैं, जो भौतिक पदार्थों के गुणों और उनकी विशेषताओं पर आधारित होता है, और जिसकी सत्यता के प्रमाण उनमें मौजूद होते हैं। एक जैसी परिस्थिति में एक जैसी क्रिया, एक जैसा परिणाम देती है, चाहे उसका कर्ता कोई भी हो।

उदाहरण के तौर पर जैसी पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा और उसके परिणामों का ज्ञान, हवाई जहाज़ उड़ाने का ज्ञान, ऐयर कंडिशनर से ठंडक पैदा करने का ज्ञान, मोबाइल फ़ोन से दूर दूर तक बातें कर पाने का ज्ञान, कम्प्यूटर पर काम करने का ज्ञान और भवन निर्माण का ज्ञान, आदि।

2. आध्यात्मिक ज्ञान

आध्यात्मिक ज्ञान वह है जिसमें मुख्यतः धार्मिक मान्यताएँ और भावनात्मक विषयों से सम्बंधित व्याख्यायें शामिल होती हैं, यह परिकल्पनाओं पर आधारित होता है। अर्थात् ऐसी बातें जिनका आवश्यक तौर पर कोई भौतिक प्रमाण नहीं होता, जो अक्सर लक्षणों पर आधारित होती हैं। आध्यात्मिक ज्ञान में कर्ता के बदल जाने पर अक्सर परिणाम भी बदलते हैं।

उदाहरण के तौर पर परमेश्वर सम्बंधित ज्ञान, जन्म और मृत्यु से आगे और पीछे की अवस्था का ज्ञान, प्रेम और घृणा के कारणों का ज्ञान, मन की शांति और अशांति का ज्ञान, विकारों और स्वभावों का ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के साधनों का ज्ञान आदि।

3. व्यावहारिक ज्ञान-

व्यावहारिक ज्ञान तो मुख्यतः अनुभवों पर ही आधारित होता है। और हर कर्ता का  व्यावहारिक ज्ञान अलग अलग होता है। इसके आधार में परिस्थितियों और समय व्यतीत होने के साथ साथ विभिन्न श्रोतों से प्राप्त विभिन्न प्रकार का ज्ञान होता है, और जिससे कर्ता के आचरण, व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण होता रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह ज्ञान व्यक्ति-विशेष की पहचान बनाने का कार्य करता है।

उदाहरण के लिए जैसे बड़ों की इज़्ज़त करने का ज्ञान, रिश्ते नातों का ज्ञान, नम्रता का ज्ञान, दैनिक दिनचर्या का ज्ञान, कार्य स्थल पर सहकर्मियों से बर्ताव का ज्ञान, सहयोग और सहायता देने और लेने का ज्ञान,  परिवार के संरक्षण का ज्ञान और स्वास्थ्य सम्बन्धी सावधानियों का ज्ञान आदि।

ज्ञान के स्रोत क्या है what are the Sources of Knowledge in Hindi

मनुष्य के पास पाँच तरह की ज्ञानेन्द्रियाँ होती है। जिससे हम मनुष्य किसी ज्ञान को प्राप्त कर पाते हैं। पांच ज्ञानेन्द्रियाँ इस प्रकार है आँख, नाक, कान, त्वचा और जिह्वा, हम मनुष्य आँख से देखकर, नाक से सूंघकर, कान से सुनकर, त्वचा से महसूस कर तथा जिह्वा से स्वाद परख कर ज्ञान प्राप्त करते है।

लेकिन ज्ञान प्राप्त करने के लिए इन ज्ञानेन्द्रियाँ के अलावा कोई माध्यम या स्रोत भी होना जरूरी है। जैसे; नाक से ज्ञान प्राप्त करने के लिए माध्यम के रुप में सुगंध होना जरूरी है।

यहाँ पर निम्नलिखित कुछ ऐसे माध्यम हैं जिससे कि ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

  1. प्रकृति (Nature)
  2. इंद्रिय अनुभव (Sense Experience)
  3. साक्ष्य (Testimony)
  4. तर्क बुद्धि (Logical Intelligence)
  5. अन्तःप्रज्ञा (Intuition)
  6. सत्ता अधिकारीक ज्ञान (Authoritative Knowledge)
  7. संवाद (Conversation)

आइये इसके बारे में संक्षेप में जानते है –

1.प्रकृति

प्रकृति, ज्ञान का प्रथम और प्रमुख साधन है। मनुष्य प्रकृति से अपने योग्यता अनुरूप सदैव कुछ ना कुछ सीखता रहता है। जैसे फलदार वृक्ष हमेशा झुका रहा है, पतझड़ के मौसम में वैसा नहीं रहता। जैसे चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है और पृथ्वी सुर्य की। ये सभी प्रक्रिया स्वयं घटित होती रहती हैं और इन्हीं प्रक्रियायों से ही दिन-रात तथा मौसम परिवर्तन होता है। प्रकृति सदैव अपने नियमों का पालन करती है और मनुष्य इनसे बहुत कुछ सीखते हैं।

2.इंद्रिय अनुभव

मनुष्य के पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, कान, नाक, त्वचा और जिह्वा आदि है। इन ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से  क्रमशः देखकर, सुनकर, सूंघकर, स्पर्श कर तथा स्वाद लेकर सांसारिक वस्तुओं के बारे में विभिन्न तरह के ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान प्राप्त करने का प्रमुख साधन इंद्रिय है। और इन इंद्रिय द्वारा प्राप्त अनुभव इंद्रिय अनुभव कहलाता है।

3.साक्ष्य

जब किसी अन्य के अनुभव और निरिक्षण पर आधारित ज्ञान को मान्यता देते हैं। तब इसे साक्ष्य कहते हैं। साक्ष्य से प्राप्त ज्ञान को व्यक्ति स्वयं निरिक्षण नहीं करता है। यह दूसरे के निरिक्षण और पेश किये गए प्रमाण पर आधारित होता है।

मनुष्य जीवन में साक्ष्य से बहुत तरह के ज्ञान प्राप्त करते हैं। जैसे- किताबों में कहानियों में बताए गए बहुत सारे तथ्यों और घटनाओं का ज्ञान जिसे स्वयं हमने नहीं देखा या अनुभव किया होता है। यह विश्वास पर आश्रित होता है।

4.तर्क बुद्धि

अनुभव से हमें जो ज्ञान प्राप्त होता है, यही तर्क में परिवर्तित हो जाता है। जब इस ज्ञान को प्रमाणित और स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है तब तर्क बुद्धि की मानसिक प्रक्रिया या योग्यता की पहचान होती है।

यही मनुष्य के सोच और समझ का आधार होता है। इसके बिना ज्ञान की प्राप्ति करना संभव होता।

5.अन्तःप्रज्ञा

इसे भी ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख स्रोत कहा गया है। यह एक प्रकार का आंतरिक बोध होता है। जिसमें ज्ञान की स्पष्टता निहित रहती है। अंतः से यह तात्पर्य है की किसी भी तथ्य को अपने मन में जानना।

इसके लिए तर्क की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि उस प्रकार के ज्ञान में हमारा पूर्ण विश्वास होता है।

6.सत्ता अधिकारीक ज्ञान

उच्च शिक्षित व्यक्तियों द्वारा दिए गए ज्ञान को सत्ता अधिकारीक ज्ञान कहा जाता है। मनोवैज्ञान से भी यह सिद्ध हो चुका है कि कुछ मनुष्य अत्यंत प्रभावशाली होते हैं। परन्तु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है।

यही लोग ज्ञान के क्षेत्र में कुछ बड़ा कार्य करते हैं। ऐसे महान व्यक्तियोँ को ज्ञान के क्षेत्र में सत्ता (Authority) माना जाता है।

7.संवाद

संवाद को सदैव ही ज्ञान प्राप्ति तथा ज्ञान बढ़ाने का स्रोत माना गया है। संवाद के जरिए हम विभिन्न लोगों से ज्ञान प्राप्त व आत्मसात कर सकते हैं।

प्राचीन भारत में किसी गूढ़ विषय के असली अर्थ को जानने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य शास्त्रार्थ की व्यवस्था थी।

ज्ञान की विशेषता क्या है? Characteristic of Knowledge in Hindi

बहुत सारी चीजें है जो ज्ञान की विशेषता को दर्शाती हैं –

  • ज्ञान ही सत्य है।
  • ज्ञान ही शक्ति है।
  • ज्ञान ही अज्ञानता और अंधविश्वास को दूर करता है।
  • ज्ञान सदैव क्रमबद्ध तरीके से प्राप्त होता है। आकस्मिक नहीं।
  • ज्ञान बांटने से सदैव बढ़ता है।
  • ज्ञान अनंत है, असीमित है।

तत्व ज्ञान क्या है, और यह कैसे प्राप्त होता है?

तत्वज्ञान वह ज्ञान है जिसमें जिसमें परमाणु से लेकर परमेश्वर तक का सम्पूर्ण ज्ञान निहित होता है। जिसको जानने के बाद न तो और कुछ जानना शेष रह जाता है और ना ही कुछ पाना। इस ज्ञान का पहला चरण है संसार।जैसे की संसार क्या है ? कैसा है ? इसकी उत्पत्ति किस प्रकार हुई?  इसका ज्ञान होता है l

तत्वज्ञान के चार चरण होते हैं –

शरीर

शरीर क्या है ? कैसा है ?इसका ज्ञान होता है कि किस तत्व कि कौन सी तन मात्रा है ? कौन सी ज्ञानेंद्रिय है? कौन सी कर्मेन्द्री है ? कौन से देवी देवता हैं ?इसकी जानकारी होती है ।

स्वाध्याय – 

स्वाध्याय में जीव जो आप स्वयं है उसका संपूर्ण ज्ञान होता है । इसमें शरीर से जीव को निकल कर बाहर जाना, स्वर्ग, नरक अथवा देवी देवताओं से मिलना और पुनः नए शरीर में वापस आना इसका ज्ञान होता है ।

आत्मज्ञान –

तत्वज्ञान का यह चौथा चरण है। इसमें जीव का आत्मा मय होना अथवा आत्मा बनना, इसप्रकार का संपूर्ण ज्ञान होता है । यह तत्वज्ञान का एक अंश है । परन्तु कुछ लोग आत्मज्ञान को ही तत्वज्ञान कह देते हैं, किंतु आत्मज्ञान अलग है और तत्वज्ञान अलग ।

तत्व ज्ञान –

अंत में तत्व रूप परमेश्वर के विराट रूप का दर्शन होता है । यह तत्वज्ञान केवल अवतारी ही दे सकता है । जैसे भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था । इसमें विराट रूप का दर्शन होता है । अन्य किसी और के पास यह तत्वज्ञान नहीं होता जो यह ज्ञान दे सके ।

अवतारी की पहचान भी इसी तत्वज्ञान से होती है । जब अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण के उस विराट का दर्शन किया तब उन्होंने पहचाना कि यही भगवान हैं। पहले अर्जुन भी भगवान श्री कृष्ण को भी सामान्य मनुष्य ही मानता थे।

तत्वज्ञान दाता जब ज्ञान देता है तो संसार, शरीर ,जीव ईश्वर और परमेश्वर सभी को ज्ञान दृष्टि देकर दिखाता है । और इन सभी को देखने के लिए अलग अलग दृष्टि होती है ।यह आवश्यक नहीं है कि वह अवतारी सभी को विराट रूप का दर्शन कराएं, वह आत्मा तक का दर्शन करवा कर छोड़ देता है ।

वह जीव को साधना के द्वारा, आत्मा व ईश्वर ही नहीं बनाता, वह सीधे जीव को, आत्मा, ईश्वर, ब्रह्म भी बना देता है । जीव का आत्मा, ईश्वर, ब्रह्म बनना लंबी साधना की अंतिम उपलब्धि होती है, किंतु परमपिता परमेश्वर के लिए यह सामान्य बात है ।

ज्ञान और अज्ञान की परिभाषा

ज्ञान क्या है, अज्ञान क्या है ? इसे इस श्लोक से समझते है –

मोक्षे धीर्ज्ञानमन्यत्र विज्ञानं शिल्पशास्त्रयोः। अमरकोश

अर्थात मोक्ष में, शिल्पादि शास्त्रों में जो बुद्धि प्रवीणता है वही ज्ञान है।

और जो इसके विपरीत है वही अज्ञान है।

जो वास्तव में जैसा है उसे वैसा जान लेना ज्ञान है। और जो जैसा नहीं है वैसा ही जानना अन्यथा ज्ञान है। और किसी वस्तु के बारे में नहीं जानना अज्ञान है।

ज्ञान के समुचित उपयोग के संदर्भ में हमारे अंत:करण में होने वाली सभी प्रक्रियाएँ हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्यों और लिए जाने वाले निर्णयों के लिए उत्तरदायी होती हैं।

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