असली खजाना

असली खजाना Asali khajana

लंबे समय से बीमार चल रहे दादाजी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई। आखिरी पल जानकर उन्होंने अपने दोनों  बहू और बेटों को अपने पास बुलाया। लेकिन जिस दिन सब इकट्ठे हुए, उसकी तबीयत इतनी खराब हो गई कि वह बोल भी नहीं पा रहा थे… फिर उसने कलम का इशारा किया और कांपते हाथों से कागज पर कुछ लिखने लगे.

asali khajana

असली खजाना  Asali khajana

लेकिन जैसे ही वे एक शब्द लिखे, वे चल बसे।

कागज पर लिखा हुआ “आम” देखकर सभी को लगा कि शायद आखिरी वक्त में उन्हें अपना पसंदीदा फल आम खाना है।

उनकी अंतिम इच्छा जानकर उनके मृत्यु भोज में कई क्विंटल आम बांटे गए।

कुछ समय बाद भाइयों ने पैतृक संपत्ति बेचने का फैसला किया और एक बिल्डर को अच्छी कीमत पर सब कुछ बेच दिया।

कुछ दिनों बाद जब बिल्डर ने वहां काम करवाया। पुराना भवन गिराया गया, बाग के पेड़ उखड़ गए।

और उस दिन जब आम का पेड़ उखड़ गया तो मजदूरों की आंखें फटी की फटी रह गईं। पेड़ के ठीक नीचे एक पुराना खजाना था जो दशकों से दबा हुआ था।

बिल्डर ने तुरंत मजदूरों को वहां से भगा दिया और खजाना खोजने लगा।

खजाने में कई करोड़ के हीरे-जवाहरात चमक रहे थे।

बिल्डर मानो खुशी से पागल हो गया… अब उसके पास जितनी संपत्ति नहीं थी उससे सौ गुना मूल्य के खजाने का हकदार था।

जब दोनों भाइयों को इस बात का पता चला तो वे बहुत पछताए, कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाए लेकिन फैसला बिल्डर के पक्ष में गया।

एक दिन जब दोनों भाई मुँह लटकाए बैठे थे, तभी अचानक छोटी बहु ने कहा…

“ओह… उस दिन बाबूजी ने कागज़ पर आम इसलिए नहीं लिखा था कि उन्हें आप खाना था बल्कि इसलिए लिखने की कोशिश कर रहें थे कि वे हमें खजाने का पता बताना चाहते थे।”

दोनों बेटे मन ही मन सोचने लगे… हम जीवन भर उस पेड़ के आस-पास रहे, कितनी बार चढ़े और उस पर उतरे, उस जमीन पर चले… वह खजाना अभी भी वहीं पड़ा हुआ था लेकिन हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं है। और अंत में यह हमारे हाथ से निकल गया।

काश बाबूजी ने हमें इसके बारे में पहले ही बता दिया होता!

दोस्तों, खजाना सिर्फ जमीन के नीचे छिपा नहीं है, असली खजाना हमारे भीतर छिपा है। और यह हीरे-जवाहरात से भी अधिक मूल्यवान है। हम अपने आप को पहचान नहीं पाते और सब की तरह एक साधारण जीवन बिताते चले जाते हैं।

अपने अनमोल खजाने को बर्बाद न होने दें… अपनी आंतरिक परतों को खुरचें… उस महान काम को जानें जो आप करने के लिए पैदा हुए थे… अपनी विशिष्टता, अपनी पहचान को भीड़ के पैरों के नीचे कुचलने न दें।

 

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