महान कवि सूरदास का जीवन परिचय Surdas ka jivan parichay
महान कवि सूरदास Surdas ka jivan parichay-हिंदी साहित्य में महान कृष्ण भक्त कवि के रूप में सूरदास का नाम सबसे पहले आता है। मुक्तक काव्य लिखने वाले प्रमुख कवियों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसे बहुत से कवी हुए हैं जिन्होंने बहुत बड़ी बड़ी रचनायें की हैं परन्तु सूरदास जी की कृतियों की बात ही कुछ और है ।
महान कवि सूरदास का जीवन परिचय Surdas ka jivan parichay
इस लेख में हम महान कवि सूरदास ( Surdas ka jivan parichay ) के जीवन के बारे में जानेंगे। सूरदास जी को सबसे पहले महान कृष्ण भक्त कवि माना जाता है। आठ सर्वश्रेष्ठ कृष्ण कवियों में सूरदास भी एक कवि हैं जिन्हें गोसाईं बिट्ठलनाथ जी ने अष्टछाप में स्थान दिया है।
सूरदास की जीवनी हिंदी जीवनी Surdas ka jivan paricay in Hindi
आइये जानते हैं की कौन थे सूरदास जी – वात्सल्य रस के सम्राट महाकवि सूरदास जी का जन्म 1478 ई. में रुनकता नामक गाँव में हुआ था। हालाँकि, कुछ लोग सीही को सूरदास का जन्मस्थान मानते हैं। उनके पिता का नाम पंडित रामदास सारस्वत ब्राह्मण और माता का नाम जमुनादास था।
उनका परिवार बहुत गरीब था। सूरदास जी अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। कई लोगों का मानना है कि वह जन्म से ही अंधे थे। चूँकि वे अंधे थे, इसलिए उसके माता-पिता और बड़े भाई उसका आदर नहीं करते थे।
वे हर पल सूरदास के अंधेपन का मज़ाक उड़ाते थे। किसी भी माता-पिता का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चे की जरूरतों को पूरा करें। लेकिन सूरदास के माता-पिता का हृदय सूरदास के लिए पत्थर के समान था। उसके माता-पिता इतने क्रूर थे कि वे सूरदास को ठीक से भोजन भी नहीं देते थे। इस तरह के भेदभाव से सूरदास को एक पल के लिए दुख हुआ लेकिन फिर भी उन्होंने खुद पर नियंत्रण रखा । उनके सर्वश्रेष्ठ सहारा श्रीकृष्ण थे। उन्होंने बचपन से ही भगवान की पूजा करना शुरू कर दिया था। भगवान श्री कृष्ण के साथ उनका एक अलग तरह का रिश्ता बन गया था।
क्या सूरदास जी नेत्रहीन थे-
सूरदास जी जन्म से अंधे थे या नहीं। इस संबंध में कोई सिद्ध प्रमाण नहीं है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण की बाल मनोवृत्ति और मानवीय स्वभाव का वर्णन सूरदास जी ने किया था। जन्म से ही नेत्रहीन व्यक्ति कभी ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए ऐसा माना जाता है कि शायद वे जन्म के बाद अंधे हुए होंगे। वहीं, हिंदी साहित्य विशेषज्ञ श्यामसुंदर दास ने भी लिखा है कि सूरदास जी वास्तव में अंधे नहीं थे, क्योंकि महाकवि सूरदास ने श्रृंगार और रूप आदि का जो वर्णन किया है, वह कोई जन्मांध व्यक्ति के बस की बात नहीं है।
सूरदास जी का विवाह-
कहा जाता है कि सूरदास जी का विवाह हो गया। हालाँकि उनके विवाह के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिला है, फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना जाता है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पूर्व सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही अपना जीवन व्यतीत करते थे।
सूरदास जी की शिक्षा
सूरदास जी श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। वह हर पल भगवान की भक्ति में डूबे रहते थे। भगवान को पाने की इच्छा के कारण एक दिन उन्होंने वृन्दावन धाम जाने का विचार किया। आख़िरकार वह वहां के लिए रवाना हो गए। अंततः जब वे वृन्दावन पहुंचे तो वहां उनकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जिसके कारण उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। वहां सूरदास जी की मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई।
वे सूरदास जी से केवल 10 वर्ष बड़े थे। बल्लभाचार्य जी का जन्म 1534 में हुआ था। उस समय वैशाख कृष्ण एकादशी चल रही थी। वल्लभाचार्य जी की नजर मथुरा के गऊघाट पर बैठे एक व्यक्ति पर पड़ी। शख्स श्री कृष्ण की भक्ति में लीन नजर आ रहा था ।
जब वल्लभाचार्य जी उनके पास आये और उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम सूरदास बताया। वल्लभाचार्य जी सूरदास जी के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सूरदास जी को अपना शिष्य बना लिया। वह सूरदास जी को श्रीनाथ जी के पास ले गये। वहीं उन्होंने मंदिर की जिम्मेदारी भी इस कृष्ण भक्त को सौंप दी। वहां उन्होंने कई भजन लिखना शुरू किया । वल्लभाचार्य जी की शिक्षाओं से सूरदास जी के जीवन को सही दिशा मिली।
अकबर और सूरदास जी का सम्बन्ध
अकबर और सूरदास जी के जीवन से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कथा के अनुसार सूरदास जी के भजनों की चर्चा देश के कोने-कोने तक फैल गई थी। यह चर्चा अकबर के कानों तक भी पहुँची। अकबर को आश्चर्य हुआ कि तानसेन के अलावा ऐसा संगीत सम्राट कौन हो सकता है? इस प्रश्न को जानने की उत्सुकता में अकबर सूरदास जी से मिलने मथुरा पहुँचे।
मथुरा पहुँचने के बाद उन्होंने सूरदास जी से श्री कृष्ण के मधुर भजन सुनाने को कहा। अकबर ने कहा कि यदि सूरदास जी उन्हें भजन सुनायेंगे तो हम उन्हें बहुत सारा धन देंगे। इस पर सूरदास जी ने कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार के धन की कोई इच्छा नहीं है । यह कहकर वे अकबर के सामने भजन गाने लगे। उस दिन के बाद से अकबर सूरदास जी का अनुयायी बन गया।
सूरदास जी की रचनाएँ
ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी ने हिन्दी काव्य में लगभग सवा लाख छंदों की रचना की। इसके अलावा सूरदास जी द्वारा लिखी गई पांच पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं, सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयंती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो। तो वहीं दूसरी ओर सूरदास जी अपनी कृति सूर सागर के लिए काफी प्रसिद्ध हैं ।
सूरदास की कृतियाँ:-
भक्त शिरोमणि सूरदास ने लगभग सवा लाख श्लोकों की रचना की थी। ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ के शोध और पुस्तकालय में सुरक्षित सूची के अनुसार सूरदास की पुस्तकों की संख्या 25 मानी जाती है।
सूरसागर
सूरसारावली
साहित्यिक लहर
सर्प लीला
गोवर्धन लीला
शब्दों का संग्रह
सूर पच्चीसी
सूरदास ने इन रचनाओं में श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया है। उनके काव्य में भावपाद और कलापक्ष दोनों समान रूप से प्रभावी हैं। सभी छंद गेय हैं, अत: उनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। उनकी रचनाओं में व्यक्त सूक्ष्म दृष्टि इतनी अद्भुत है कि आलोचकों को अब उनकी मौलिकता पर संदेह होने लगा है।
सूरदास जी की मृत्यु-
कवी शिरोमणि सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई. में गोवर्धन के पास स्थित पारसौली गांव में हुई थी । सूरदास जी ने समय की धारा को एक अलग गति दी। इसके माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और शृंगार का अप्रतिम संयोजन प्रस्तुत किया है। और उनकी रचनाएँ हिंदी कब के क्षेत्र में एक अलग स्थान रखती हैं। साथ ही, ब्रज भाषा को साहित्यिक दृष्टि से उपयोगी बनाने का श्रेय महाकवि सूरदास को ही जाता है।
FAQ-
1. सूरदास की काव्य भाषा क्या है?
महाकवि सूरदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ भक्त कवि थे। इसकी संपूर्ण रचना ब्रज भाषा की है, जिसमें भक्त के हृदय की भावनात्मक मुक्ति को विभिन्न राग-रागिनियों के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
2. सूरदास की जीवनी कैसे लिखें?
रामचन्द्र शुक्ल जी के अनुसार सूरदास का जन्म 1540 ई. के लगभग तथा उनकी मृत्यु 1620 ई. के लगभग मानी जाती है। श्रीगुरु बल्लभ का सार सुनायें, लीला का विवरण सुनायें। मुकदमे के अनुसार उस समय सूरदास की आयु 67 वर्ष थी। वे सांसद जन्म से ब्राह्मण और अन्य थे।
3. सूरदास की जीवनी एवं कृतियाँ?
महान भक्ति कवि सूरदास का जन्म 1478 ई. में ‘रुनकता’ नामक गाँव में पंडित राम दास जी के घर में हुआ था।
4. सूरदास जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
सूरदास जी का जन्म 1478 ई. में रुनकता गाँव में हुआ था।
5. सूरदास जी के माता-पिता का नाम क्या था?
सूरदास जी के पिता का नाम पंडित रामदास था। और उनकी माता का नाम जमुना दास बाई था। उनका परिवार सारस्वत ब्राह्मण परिवार से था।
6. सूरदास जी के गुरु का क्या नाम था?
सूरदास जी के गुरु का नाम आचार्य बल्लभाचार्य था।
7. सूरदास जी को किस कारण से जाना जाता है?
सूरदास जी अपनी कृष्ण भक्ति के लिए जाने जाते हैं। अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने कई रचनाएँ लिखीं जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित थीं।
8.सूरदास जी की प्रमुख रचनाओं के नाम बताइये?
सूरदास जी की प्रमुख रचनाएँ हैं – सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयंती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो।
9. सूरदास जी की पत्नी का क्या नाम था?
सूरदास जी की पत्नी का नाम रत्नावली था।