दूध का तालाब 

दूध का तालाब - हिंदी कहानी  Ponds gyan hans

दूध का तालाब – हिंदी कहानी 

एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक तालाब खुदवाया। तालाब के किनारे भाँति भाँति प्रकार के वृक्ष भी लगवाए। परन्तु कई महीने बीत जाने के पश्चात भी  उस तालाब में पानी नहीं हुआ। राजा बड़े चिंतित हुए उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि आखिर तालाब में पानी कैसे भरेगा।

राजा के मंत्री ने राजा को एक परामर्श दिया कि क्यों न इस तालाब को दूध का तालाब बना दिया जाये। राजा के पूछने पर उसने बताया कि यदि सारी  प्रजा एक एक लोटा दूध इस तालाब में डाले, तो तालाब दूध से भर जायेगा, और यह तालाब दूध का तालाब बन जायेगा।

राजा को यह परामर्श बड़ा ही अच्छा लगा। राजा ने फ़ौरन पूरे राज्य में डुग्गी पिटवाकर सारी प्रजा को एक एक लोटा दूध तालाब में डालने का हुक्म दिया। प्रजा में यह फरमान चर्चा का बिषय बन गया। राजा का हुक्म था इसलिए सब को इस आदेश का पालन करना था, और कोई इसे मना नहीं कर सकता था।जिनके पास दूध देने वाली गायें या भैंसे थीं, उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं थीं, समस्या तो उनके लिए थी जिनके पास दूध देने वाली एक भी गाय या भैंस नहीं थी। मनसुख भी एक ऐसा ही व्यक्ति था जिसके पास न तो दूध देने वाली गाय थी और न ही भैंस।

निश्चित समय के अनुसार सब लोगों को अपने अपने घरों से एक एक लोटा दूध लेकर लिकलना था। घर से निकलने से पहले मंसू ने यह सोचा कि क्यों न एक लोटा दूध के बजाय एक लोटा पानी ही लेकर चलें, आखिर सब लोग दूध तो लेकर आएंगे ही, और इतने बड़े दूध भरे तालाब में मेरे एक लोटे पानी का तो पता ही नहीं चलेगा। यही सोचकर वह एक लोटे दूध के बजाय एक लोटा पानी लेकर घर से चल पड़ा।

तालाब में दूध डालने की लाइन बड़ी लम्बी थी। बारी बारी से एक एक करके लोग अपने लोटे का दूध तालाब डालते और दूसरे छोर से बाहर निकल जाते। मनसुख लाइन में सबसे पीछे था। वह मन ही मन सोच रहा था की चलो अच्छा है कि मैं लाइन में सबसे पीछे हूँ सभी लोगों के द्वारा तालाब में डाले गये दूध में, मेरे एक लोटे पानी का पता चलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

बहुत देर बाद, आखिर मनसुख का नंबर आ ही गया। मनसुख जैसे ही तालाब में अपने लोटे का पानी डालने के लिए पंहुचा, नजारा देखकर उसकी आंखे फटी की फटी रह गयीं। यह क्या, पूरा तालाब दूध के बजाय पानी से लबालब भर चुका था। मनसुख ने अपने लोटे का पानी भी तालाब में डाला और दूसरे छोर से बाहर निकल गया।

मनसुख मन ही मन सोच रहा था कि क्या एक लोटे पानी का विचार जैसे मेरे मन में आया, वैसे ही बाकी लोगो के मन में भी आया होगा, हाँ सच में यही बात है। और जिसके कारण लोग एक लोटा दूध के बजाय, एक लोटा पानी लेकर, यह सोचकर आ गए कि बाकी लोग तो दूध से भरा लोटा ही लेकर आयेंगे।

अक्सर हमारे  जीवन में भी इसी प्रकार की घटनायें होती हैं। कई बार समाज में हम बहुत से कार्य यह सोचकर कर जाते है कि चलो हम जैसे तैसे करके हट जाते है बाकी लोग इसे अच्छी तरह से करेंगे, तो यह ठीक हो जायेगा और हमारी कमीं भी नजर नहीं आयेगी। परन्तु यह सोच अक्सर गलत साबित होती है और चीजें बहुत ज्यादा ख़राब हो जाती हैं ,क्योंकि हम यह भूल जाते हैं की जो सोच हमारे मन में उभरी है यही सोच औरों के मन में भी उपज सकती है।

इसलिए अपनी जिम्मेदारी को भलीभाँति पूरी ईमानदारी के साथ निभाना चाहिए। एक बात यह रखनी चाहिये कि अगर आप किसी कार्य को गलत तरीके से कर रहें हैं तो आप को किसी और से सहीं की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

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