सच्चाई की जीत – हिंदी कहानी Hindi Kahani
एक बार की बात है एक घुड़सवार अपने गुस्से से भरे घोड़े को बेचने के लिए बाजार ले जा रहा था। रास्ते में चलते-चलते उसे भूख लगी और वह खाना खाने के लिए एक बगीचे में रुक गया। उसने घोड़े को एक पेड़ से बांध दिया। घोड़ा पेड़ के नीचे घास खाने लगा और सवार भी उसका खाना खाने लगा।
तभी एक व्यक्ति अपने गधे को ले आया और वह अपने गधे को उसी पेड़ से बांधने लगा। यह देखकर घोड़े के मालिक ने कहा, ‘भाई, अपने इस गधे को इस पेड़ से मत बांधना, मेरा घोड़ा बहुत गुस्से में है, यह तुम्हारे इस गधे को मार डालेगा।
गधे के मालिक ने कहा, “यह पेड़ अकेला तुम्हारा नहीं है और मैं अपने गधे को ही इससे बाँधूँगा।” घोड़े के मालिक ने कहा, “यदि तुमने मेरी बात नहीं मानी तो इसके जिम्मेदार तुम स्वयं होगे।” गधे का मालिक नहीं माना और गधे को उसी पेड़ से बांध कर चला गया।
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घोड़े ने उस गधे को मारा और उसे नीचे गिरा दिया। इससे पहले कि घोड़े का मालिक उसे संभाल पाता, घोड़े ने गधे को लात मार कर मार डाला। तभी गधे का मालिक आया और अपने मरे हुए गधे को देखकर चिल्लाने लगा, “अरे, ये क्या क्या किया, तुम्हारे घोड़े ने मेरे गधे को मार डाला है, अब मुझे मेरा गधा लाओ, नहीं तो मैं तुम्हें यहाँ से जाने नहीं दूंगा।”
घोड़े के मालिक ने कहा, ‘मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि मेरा घोड़ा गुस्से में है। वह तुम्हारे इस गधे को मार डालेगा परन्तु तुमने मेरी बात नहीं मानी। अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, क्योंकि मैंने तुम्हें पहले ही आगाह कर दिया था। दोनों युवक बहस करने लगे। तब एक राहगीर ने यह देखा और उसके पास आकर कहा, ‘तुम दोनों राजा के दरबार में जाओ, राजा निश्चित ही न्याय करेंगे। दोनों ने उसकी बात मानी और न्याय के लिए राजा के दरबार में गए।
दरबार में राजा ने गधे के मालिक से पूछा, सारी बात बताओ, तुम्हारा गधा कैसे मरा। गधे के मालिक ने कहा, “महाराज, मेरा गधा और इसका घोड़ा एक ही पेड़ से बंधे थे, अचानक इसका घोड़ा पागल हो गया और उसने मेरे गधे को मार डाला।
राजा ने घोड़े के मालिक से पूछा, ‘क्या तुम्हारे घोड़े ने गधे को मार डाला है? घोड़े का मालिक चुप था। राजा ने फिर कहा- बोल क्यों नहीं रहे हो? क्या यह सच है। बार-बार पूछने पर भी घोड़े के मालिक ने कुछ नहीं बताया। राजा ने कहा, “क्या तुम बहरे और गूंगे हो? क्या तुम बोल नहीं सकते?
तभी गधे के मालिक ने अचानक कहा, महाराज, यह व्यक्ति गूंगा-बहरा नहीं है। पहले तो यह मुझे चिल्ला रहा था कि अपने गधे को यहां मत बांधो, मेरा घोड़ा इस गधे को मार डालेगा। अब यह आपके सामने मूक-बधिर होने का नाटक कर रहा है। यह सुनकर घोड़े के मालिक ने कहा, क्षमा करें महाराज, यह व्यक्ति बार-बार झूठ बोल रहा था। मैंने चुप रहने का नाटक किया ताकि वह अपने मुँह से सच बोले और उसने ऐसा ही किया।
यह सुनकर राजा मुस्कुराने लगे और गधे के मालिक से बोले, “इसका मतलब उसने तुम्हें पहले ही चेतावनी दे दी थी कि घोड़ा गुस्से में है, गधे को यहाँ मत बाँधो, लेकिन तुमने उसकी बात नहीं मानी और फिर भी अपने गधे को वहीं बाँध दिया।” तुम्हारा झूठ पकड़ा गया है और अब तुम खुद इसके लिए जिम्मेदार हो।
कहानी से सीख मिलती है -कि झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ को कितना भी छुपा लो सच सामने आ जाता है और झूठ पकड़ा जाता है।