जीवन

​​Jeevan, what is life
सभी जीवों में मनुष्य सबसे श्रेष्ठ है। इंसान होने की अपनी मर्यदाये है।  धरती पर सभी जीव जिनका दिमाग मनुष्य के दिमाग से लाखो गुना छोटे है, वे अपनी जीवन प्रकिया बड़े अच्छे से चलाते है।  वे मनुष्य की भाँति ही जीवन प्रक्रिया करते है।  मनुष्य की तरह वे पैदा होते है, बड़े होते है जीवन यापन करते है बच्चे पैदा करते है, और यह सब वे बड़े आराम से करते है।  मनुष्य यही चीजे बड़े झमेले के साथ करता है।  लेकिन वे छोटे जीव इन्ही चीजों को बड़े आराम से करते है।  क्या ये चीजे मनुष्य के बुद्धिमत्ता के ऊचे स्तर को दर्शाती है। मनुष्य खुद को बुद्धिमान मानता है और यह सत्य भी है। मनुष्य धरती पर सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी है। मनुष्य का मस्तिष्क ही उसे उच्च कोटि का  प्राणी बनाता है। इस हिसाब से मनुष्य को चीजों को अच्छे तरीके से समझना महसूस करना और व्यक्त करना चाहिये। परन्तु वास्तव में देखा जाये तो सभी जीवो में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो जीवन में बहुत ज्यादा संघर्ष करता है। अभी तक धरती पर ऐसा कोई जीव  नहीं है जो मनुष्य जितना संघर्ष करने वाला है। फिर मनुष्य इतना संघर्ष करने वाला क्यों है शायद उसे इतना बिकसित दिमाग(Brain) मिला है इसलिए ? मनुष्य का दिमाग और शरीर एक सुपर कम्प्यूटर की तरह है। जिसका लोग उपयोग करने का तरीका नहीं जानते, बस किसी तरह बार बार गलतियां करते हुए उपयोग करते रहते है।  आज मनुष्य के लिए हर चीज एक समस्या है जैसे अगर वे गरीब है तो दुखी है, अमीर है तो कर (Tax) देने में दुखी है, अगर शादी नहीं हो रही है तो भी दुखी है, शादी हो गयी तो भी दुखी, बच्चे नहीं तो दुखी, हो गए तो अलग तरीके से दुखी। ;नौकरी नहीं मिल रही है तो दुखी और मिल गयी तो भी दुखी, वस्तुतः वह दुखी ही है बस कारण बदलते है। इस प्रकार कोई ऐसा कारण नहीं जहाँ मनुष्य दुखी न हो। फिर लोग एक गलत अभिधारणा बना लेते है की जीवन एक दुःख है और कुछ नहीं है। नहीं यह गलत है जीवन कोई दुःख नहीं है और न ही आनंद है, जीवन बस विद्यमान  है, यह एक शानदार प्रक्रिया है। अगर हमकी सवारी करते है तो आनंदित होते है और यदि हम इसके निचे कुचले जाते है तो यह बहुत ही भयंकर लगता है। सवाल यह पैदा होता है कि क्या आप जीवन की नाव  पर सवार है या उससे कुचले जा रहे है।  सवाल यह है की लोगो के पास कितना दुःख बाहर से आ रहा है, और इसका जबाब है जरा सा , यानि बाकि दुःख लोग खुद ही पैदा कर रहे हैं। इंसान को हर जगह दुःख है बैठने में दुःख, खड़े होने में दुःख, रहने में दुःख, साथ न रहने में दुःख, यानि हर रूप में कही न कही दुःख है इसका एहसास मनोवैज्ञानिक है क्या इंसान को अपने सोचने समझने और व्यवहार के तरीके को बदलना नहीं चाहिए। आपके भीतर क्या होता है क्या ये आपकी मर्जी से नहीं होना चाहिए ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here