जौ का एक दाना 

Gyan Hans

एक बार स्वर्ग लोक में यज्ञ का आयोजन हुआ। सारी सामग्री का इंतजाम हो चुका था, बस एक वस्तु नहीं मिल रही थी,वह थी जौ।  जौ हवन में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं में से एक सबसे महत्वपूर्ण वस्तु होती है। यह कार्य नारद जी को सौपा गया।  इंद्र देव ने नारद जी से कहा -पृथ्वी लोक में एक ब्राम्हण रहते हैं उनके पास जौ अवश्य मिल जाएगी। नारद जी जौ लेने के लिए पृथ्वी लोक के लिए चल पड़े।  नारद जी इंद्र देव द्वारा बताये गए उस ब्राम्हण के घर के पास पहुंच रहे थे कि वहां पर उन्होंने देखा, वह ब्राम्हण एक पतली लकड़ी से जमीन की दरार में फंसे एक, जौ के दाने को निकाल रहा था। नारद जी वहीं खड़े खड़े वह दृश्य बहुत देर तक देखते रहे, वह ब्राम्हण उस एक जौ के दाने को निकालने में इतने व्यस्त थे की उन्होंने नारद जी को देखा ही नहीं।  नारद जी यह सब देखने के बाद वहीं से वापस स्वर्ग लोक चले गए।

नारद जी को  देखकर इंद्र देव ने जौ के बारे में पूछा, नारद जी इंद्रा देव से बोले, आपने हमें किसके पास जौ लेने के लिए भेज दिया। वह ब्राम्हण तो महा दरिद्र प्रतीत होता है, जो एक जौ के दाने को दरार से  निकालने के लिए इतनी मसक्कत कर रहा हो, वो भला हमें इतने बड़े यज्ञ के लिए जौ कहाँ से देगा। इंद्र देव ने कहा तो क्या उस ब्राम्हण ने जौ देने से मना कर दिया।  नारद जी बोले- इंद्र देव, मैं उस ब्राम्हण की हरकतों को देखकर उसकी परिस्थिति को समझ गया कि वह जौ  देने योग्य नहीं है और मैं बिना उससे कुछ बोले वापस आ गया। इतना सुनकर इंद्रदेव ने नारद जी से दुबारा उस ब्राम्हण के पास जाकर जौ मांगने का आग्रह किया।

इंद्रदेव के बार बार आग्रह करने पर नारद जी बेमन से उस ब्राम्हण के पास जाने के लिए तैयार हो गए।  नारद जी उस ब्राम्हण के घर पहुंच गए। ब्राम्हण ने नारद जी को प्रणाम किया। अतिथि सत्कार करने के बाद नारद जी से आने का कारण पूछा। नारद जी ने बताया स्वर्ग लोक में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया है जिसके लिए इंद्र देव ने हमें आपके पास जौ लाने के लिए भेजा है। ब्राम्हण ने दोनों हाथ जोड़कर कहा – अहोभाग्य हमारे जो मुझे ऐसी सेवा करने का सुभअवसर प्राप्त हुआ है।

उसने तुरंत अनाज घर से सात बोरे जौ के निकलवाकर बैलगाड़ी पार लाद दिए। और बैलगाड़ी को लेकर नारद जी के साथ चल दिया। थोड़ी दूर जाने के बाद रास्ते में एक नाला पड़ा। नाले को पार करना बैलगाड़ी के लिए संभव न था।  ब्राम्हण ने तुरंत दो बोरे जौ  के उतारकर नाली में एक एक करके रख दिए, जिससे नाले पर रास्ता बन गया और ब्राम्हण ने बैल गाड़ी को पार किया।  नारद जी यह सब देख आश्चर्य चकित थे, कुछ दूर जाने के बाद नारद जी ने  ब्राहण से कहा – अब यह जौ के बोरे यही छोड़ दीजिये हम यही से चले जायेंगे। ब्राम्हण बोरो को वही छोड़कर, नारद जी को प्रणाम करके जाने लगा, तो नारद जी से रहा नहीं गया, उन्होंने ब्राम्हण से कहा – मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ, ब्राह्मण ने कहा पूछिए। नारद जी ने कहा – मैंने आपको उसदिन देखा, आप एक जौ के दाने को निकालने के लिये, घंटो कड़ी धूप में मसक्कत करते रहे और आज दो बोरे जौ के नाले में डाल दिए, सिर्फ बैल गाड़ी का रास्ता बनाने के लिए, मैं बहुत आश्चर्य चकित हूँ, कृपया इसका कारण बताएं ।  ब्राह्मण मुस्कराया और बोला, भगवन, मैं उस एक जौ के दाने को इसलिए निकाल रहा था, क्योकि वह एक बंजर जमीन की दरार में फंसा हुआ था, जहाँ पर न तो वह उग पाता और ना ही उसे कोई जानवर या पंछी खा पाते। वह वहाँ पड़े पड़े सड़ जाता पर किसी के काम न आता। और आज मैंने जौ के बोरे को नाले में इसलिए डाला क्योंकी नाले पर रास्ता बनाना बहुत आवश्यक था।  आप ये जौ बहुत बड़े कार्य के लिए ले जा रहे है। देव यज्ञ होगा जिससे सारे संसार का कल्याण होगा। और इस प्रकार नाले में डाला गया जौ व्यर्थ नहीं गया बल्कि एक बहुत बड़े कार्य में अपना योगदान दिया हैं ।  ब्राम्हण की बात सुनकर नारद जी अति प्रशन्न हुए और आशीर्वाद देकर, जौ लेकर स्वर्गलोक को चल दिए।

यह सत्य है- कि यदि जरुरत न हो तो एक पैसा भी व्यर्थ में खर्च नहीं करना चाहिए, और यदि जरुरत हो या ऐसा कोई कार्य हो जिसमें सबका लाभ निहित हो तो दस का सौ खर्च करने में भी हिचकिचाना नहीं चाहिए।

 

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