भगवान ही हमारे मन में विचार पैदा करते हैं
एक बार एक बुढ़िया अपनी बेटी के साथ कहीं जा रही थी। रास्ता लम्बा था ऊपर से कड़ी धूप, और दूर दूर तक छाँव मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं थी, ऐसे में पैदल चलना बहुत मुश्किल हो रहा था, मज़बूरी थी इसलिए वो बुढ़िया अपनी बेटी के साथ पैदल चली जा रही थी। दोनों पसीने से लतपथ थे।
तभी उनके पास से घोड़े पर सवार एक व्यक्ति गुजरा। उस घुड़सवार को देखकर बुढ़िया ने सोचा क्यों न इस घुड़सवार को बोल दूँ की वह मेरी बेटी को थोड़ी दूर छाँव भरी जगह तक छोड़ देगा। यही सोचकर बुढ़िया ने आवाज लगाई, ये घोड़े वाले, क्या तुम मेरी बेटी को थोड़ी दूर छाँव भरे स्थान तक छोड़ दोगे। मैं किसी तरह पैदल ही आ जाउंगी। घुड़सवार ने बुढ़िया की बात सुनते ही कड़वाहट भरी आवाज में बोला – नहीं मैं उसे घोड़े पर नहीं बैठा सकता, इतनी धूप में मेरा घोड़ा थक जायेगा। यह कहकर वह घुड़सवार आगे निकल गया।
आगे जाने के बाद घुड़सवार ने सोचा – मुझे बुढ़िया को मना नहीं करना चाहिए था आखिर कौन सा बुढ़िया घोड़े पर बैठने वाली थी वह तो सिर्फ अपनी बेटी को मेरे साथ बैठा रही थी। उसकी बेटी सुन्दर और जवान है, वहां से उसे घोड़े पर बैठा लेता और कहीं दूर ले जाकर उसके साथ मजा कर सकता था, कौन सी बुढ़िया वहां होती।
यही गलत विचार लेकर वह अपने घोड़े को घुमाया और वापस बुढ़िया के पास पहुंच गया और बोला – ठीक है माता जी आप अपनी बेटी को हमारे घोड़े पर बैठा दीजिये मैं उसे आगे तक छोड़ देता हूँ। बुढ़िया बोली नहीं अब तुम जाओ मुझे इसकी कोई जरुरत नहीं है मेरी बेटी मेरे साथ पैदल ही चली जाएगी। यह सुनकर घुड़सवार ने पूछा आखिर आप मना क्यों कर रहीं हैं इसके पहले तो आप मुझसे आग्रह कर रहीं थीं।
बुढ़िया मुस्कराई और बोली – जिसने तुम्हारे मन में वो विचार डाले हैं जिसकी वजह से तुम वापस आये हो, मेरे मन में भी उसने ही विचार डाले हैं जिसकी वजह से मैं तुम्हें मना कर रहीं हूँ। बुढ़िया की बात सुनकर वह घुड़सवार वापस चला गया।
यह सत्य है की भगवान ही हमारे मन में विचार पैदा करते हैं हम किसी के साथ कुछ गलत करने का विचार अपने मन में लाते तो उसे सचेत करने के लिए ईश्वर उसके मन में पहले ही अच्छे विचार उत्पन्न कर देते हैं
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