चार दीये

Shikshaprad kahani in hindi, gyan hans

Shikshaprad kahani in hindi

अँधेरी काली रात थी। चारों तरफ घना अँधेरा छाया हुआ था। घने अँधेरे के बीच एक कमरें में प्रकाश दिखाई दे रहा था। क्योंकि वहाँ चार दीये जल रहे थे। वे दीये शांति, विश्वास, प्रेम और उम्मीद के थे । कमरे में एकदम शांति थी। एकांत देख कर चारो दीये आपस में बात करने लगे।

पहला दिया बोला – मैं शांति हूँ। आज के समय में हर तरफ लूट खसोट, चोरी-चकोरी और हिंसा हैं। इंसान का मन अशांत हो गया है। यह सब मुझे बहुत दुखी करता है। ऐसे में मेरा यहाँ रहना बहुत मुश्किल हो गया है। अब मैं यहाँ नहीं रह सकता, मैं तो जा रहा हूँ। इतना कहकर वह शांति का दिया बुझ गया।

दूसरे दीये ने कहा – मैं विश्वास हूँ। मनुष्य के झूठ फरेब और बेईमानी वाला व्यवहार मेरे वजूद को नष्ट किये जा रहा है। अब यहाँ रह पाना मेरे लिए सम्भव नहीं है। अब मैं भी जा रहा हूँ। यह कहकर विश्वास का दिया भी बुझ गया।

तीसरा दिया बहुत दुःखी था। वह बोला – मैं प्रेम हूँ। आज के वक्त में स्वार्थ, नफरत और परसंताप की वजह से मानव के मन से मेरा वजूद मिटता जा रहा है। मनुष्य के अंदर प्रेम की भावना समाप्त होती जा रही है। अब यह सब मुझसे सहन नहीं होता। मैं अब यहाँ नहीं रह पाऊँगा। मैं भी जा रहा हूँ। यह कहकर प्रेम का दिया भी बुझ गया।

तीसरे दीये के बुझते ही कमरे में रोशनी कम हो गयी। अब केवल एक ही दिया जल रहा था। इसी बीच एक छोटा सा बालक कमरें में आया। तीनो दीयों को बुझा देख वह बहुत दुखी हो गया। उसकी आँखे आशुओं से भर गयीं। और वह बोला -तुम तीनो दीये ऐसे कैसे बुझ सकते हो। तुम इस प्रकार मेरे जीवन रूपी कमरे में अँधेरा कैसे कर सकते हो। तुम्हें तो अंत तक जलना था। तुम सब ने बीच रास्ते में ही मेरा साथ छोड़ दिया। अब मैं क्या कर सकता हूँ। इस प्रकार अँधेरे के साथ भला मैं जीवनपथ पर आगे कैसे बढ़ सकता हूँ।

उस नन्हे बालक की बात सुनकर चौथे, “उम्मीद” के दिये ने कहा – इस प्रकार उदास मत हो बालक। मैं उम्मीद हूँ, और मैं अभी भी जल रहा हूँ, और तुम्हारे साथ हूँ। मैं बाकी दीयों को जलाने में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। तुम मेरी लौ से बुझे हुए दिये – शांति ,विश्वास और प्रेम को जला सकते हो। और अपने जीवन रूपी कमरे को फिर से प्रकाशमान कर सकते हो।

चौथे दिए की बात सुनकर बालक प्रशन्न हो गया। फिर उसने उम्मीद रूपी दिए से शांति, प्रेम और विश्वास को पुनः प्रज्वलित करके अपने जीवन रूपी कमरे को फिर से प्रकाशमय कर लिया।

शिक्षा – संसार में सब कुछ परिवर्तनशील और क्षणिक है। किसी का भी वक्त सदैव एक सा नहीं रहता। जीवन में कभी उजाला रहता है तो कभी अँधेरा हो जाता है। परंतु मन में कभी भी उम्मीद के  दीये को बुझने नहीं देना चाहिए। क्योंकि उम्मीद का “दिया” अगर आपके मन में जल रहा है तो आप अपने अंधकारमय जीवन को फिर से प्रकाशमान कर सकते हैं।

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