वाणी की चतुराई 

वाणी की चतुराई

वाणी की चतुराई -shikshaprad laghu kahani

एक विशाल राज्य के राजा के पास एक हाथी था। वह हाथी राजा को बहुत प्रिय था। हाथी बहुत ही समझदार था। वह कभी भी किसी को कोई नुकसान पहुँचता था। इसलिए अक्सर राजा उसे विचरण करने के लिए खुला छोड़ देते थे।

वक्त बीतता गया वह हाथी बूढ़ा हो गया था। राजा ने  उस हाथी को खुला छोड़ दिया। वह हाथी पूरे नगर में विचरण करने लगा।

राजा ने डुग्गी पिटवा दिया कि अगर किसी ने आकर हमें यह कहेगा कि “हाथी मर गया” तो हम उसे सजा-ऐ मौत देंगे।

राज्य के सभी लोग डरे हुए थे। हाथी जिसके भी दरवाजे पर जाता उस घर के लोग उस हाथी को खिला पिला कर जल्दी से आगे हाँक देते थे।

लोग यह सोचते थे कि कहीं अगर यह हाथी हमारे दरवाजे पर मर गया तो राजा से हमें कोई नहीं बचा पायेगा।

हाथी काफी जीर्ण अवस्था में था। उसकी हालात खराब होती जा रही थी। एक दिन चलते चलते वह हाथी एक धोबी के घर के पास गया।  धोबी ने तुरंत उसे जो कुछ संभव हो सका खिलाया।

धोबी हाथी को अपने घर से दूर करना चाह रहा था परन्तु हाथी वहां से दूर जाने के बजाय धोबी के द्वार पर ही बैठ गया।  और थोड़ी देर के बाद वह मर गया।

धोबी के द्वार पर आसपास के लोगो की भीड़ इकट्ठी होने लगी। सभी यही चर्चा कर रहे थे कि अब हाथी के मरने की खबर राजा को कौन देगा। कोई कहता – भैया हाथी तो धोबी दे द्वार पर आकर मरा है, अब तो धोबी की खैर नहीं, जैसे ही धोबी राजा को हाथी के मरने की खबर देने जायेगा, राजा इसे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे।

धोबी बहुत ही चतुर और वाक् पटु था। उम्र आधी से ज्यादा बीत चुकी थी, जिससे जीवन का तजुर्बा भी बहुत था। शब्दों का हेरफेर वह बहुत अच्छी तरह से जानता था।

डर तो था ही, फिर भी हिम्मत करके धोबी राजा के पास गया।  और बोला महाराज – आपका हाथी मेरे द्वार पर आया और वहीं लेट गया। अब वह न तो उठता है न बैठता है। न हिलता है, न खाता है न पीता है और न ही साँस लेता है।

राजा ने कहा- तो क्या “हाथी मर गया”। धोबी ने तुरंत कहा -महाराज यह मैं कैसे कह सकता हूँ। यह तो आप ही कह सकते हैं। क्योंकि मैं कहूंगा तो मुझे मृत्युदंड मिलेगा।

राजा धोबी की वाणी की चतुराई से बहुत प्रसन्न हुए और उसे इनाम के तौर पर स्वर्ण मुद्रायें उपहार स्वरुप भेंट किये।

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