कर्म ही पूजा है
कर्म ही पूजा है, और यही सत्य है। महाभारत की एक छोटी कहानी के माध्यम से समझते हैं जो इस कहावत को प्रदर्शित करती है – कर्म ही पूजा है और कर्तव्य ही ईश्वर है। कौशिक एक तपस्वी ब्राह्मण थे जो वेदों और अन्य शास्त्रों में पारंगत थे। एक बार जब वे एक पेड़ के नीचे वेदों का जाप कर रहे थे, तभी एक सारस की बूंद उनके ऊपर गिर पड़ी। क्रुद्ध होकर उन्होंने एक क्रोधित दृष्टि से बेचारे सारस को भष्म कर दिया।
कुछ समय बाद, वे भिक्षा के लिए गाँव के चारों ओर गए और एक महिला के घर पहुँचे जो अपने घर के कामों में लीन थी। कौशिक ने देखा कि वह अपने पति की ज़रूरतों को बहुत ध्यान से देख और पूरा कर रही है। उसके काम खत्म होने के बाद ही वह उनके लिए भिक्षा लेकर निकली, तब कौशिक के गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था। लेकिन महिला ने धीरे से कहा, ‘हे पूज्य महोदय, मैं आपके क्रोध से आहत होने वाली सारस नहीं हूं।’ कौशिक अवाक रह गये । आगे बातचीत में, महिला ने उन्हें मिथिला जाने और धर्मव्याध से ज्ञान प्राप्त करने का निर्देश दिया।
मिथिला में, उन्हें पता चला कि धर्मव्याध एक कसाई था न कि कोई सन्यासी। उनके आश्चर्य के लिए, कसाई ने गर्मजोशी से उसे अपने निवास पर आमंत्रित किया और उस पवित्र महिला के बारे में पूछताछ की जिसने उन्हें भेजा था। कौशिक वहीं स्तब्ध रह गए। उन्होंने एहसास किया कि उनका ज्ञान एक विनम्र कसाई और गाँव की महिला की तुलना में कुछ भी नहीं था। कौशिक ने धर्मव्याध को अपने माता-पिता की सेवा करते हुए और अपने कर्तव्यों को सावधानीपूर्वक करते हुए देखा। कसाई ने तब ब्राह्मण को अपने धर्म के बारे में बताया और बताया कि कैसे किसी के कर्तव्य को अन्य सभी पर प्राथमिकता दी जाती है।
कौशिक ने सबक सीखा और अपने उपेक्षित कर्तव्यों को निभाने के लिए वहां से चले गए। वह समझ गये थे कि अपने दुःखी माता-पिता की देखभाल करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है, और, जैसा कि सत्य साईं बाबा कहते हैं, ‘काम ही पूजा है, और कर्तव्य ईश्वर है।’
Yes it’s just thinking of people to justify whatever they are doing.
‘Karm hi Puja h’ is not supported by any scriptures.
But, ‘Karm Puja ban sakti h’ if 🙂
yajñārthāt karmaṇo ’nyatra
loko ’yaṁ karma-bandhanaḥ
tad-arthaṁ karma kaunteya
mukta-saṅgaḥ samācara (Bhagvad Gita 3.9)
Translation :- Work done as a sacrifice for Viṣṇu has to be performed; otherwise work causes bondage in this material world. Therefore, O son of Kuntī, perform your prescribed duties for His satisfaction, and in that way you will always remain free from bondage.
If you do your work only for the satisfaction of Lord Viṣṇu, you then only can say that ‘Karm hi Puja h’. Otherwise doing work for the satisfaction of your Boss, making your clients happy or just getting paid doesn’t count in ‘Karm hi Puja h’.
Hare Krsna
Chant and be Happy
Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare