विद्वान की पहचान

विद्वान की पहचान Identifying the Scholar

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक महान गुरु रहते थे। उनका ज्ञान, योग्यता और अनुभव पूरे राज्य में प्रसिद्ध था। एक दिन, गाँव में खबर फैली कि पास के नगर में एक और विद्वान आए हैं, जिनका ज्ञान असाधारण है। यह विद्वान जादुई शक्तियों और विज्ञान में महारत हासिल किए हुए थे। लोगों ने सुन रखा था कि वो किसी भी समस्या का हल निकाल सकते हैं। यह सुनकर गाँव के लोग बेचैन हो गए और उस विद्वान से मिलने के लिए नगर की ओर दौड़ पड़े।

Identifying the Scholar

वहीं का राजा, जो अपने राज्य को और समृद्ध और शक्तिशाली बनाना चाहता था, यह खबर सुनकर उत्साहित हो गया। उसने तुरंत आदेश दिया कि दोनों विद्वानों को उसके दरबार में बुलाया जाए। राजा दोनों के बीच तुलना करना चाहता था कि कौन बेहतर है, और वह किससे अपने राज्य का सबसे अधिक लाभ उठा सकता है।

दरबार में, जब दोनों विद्वान आमने-सामने आए, तो माहौल में एक अजीब सा तनाव महसूस हुआ। राजा ने गंभीरता से कहा, “मैं चाहता हूँ कि आप दोनों मेरे राज्य में कुछ ऐसा करें जिससे मेरे लोग अधिक खुशहाल और समृद्ध हो सकें। जो भी मेरे राज्य के लिए सबसे उपयोगी सिद्ध होगा, उसे मैं अपना प्रधान विद्वान नियुक्त करूंगा।”

पहले विद्वान ने विनम्रता से कहा, “महाराज, मैं आपके राज्य के लोगों के लिए एक ऐसा उपकरण विकसित कर सकता हूँ जिससे संवाद और जानकारी का आदान-प्रदान बहुत आसान हो जाएगा। इससे आपके आदेश तेजी से फैलेंगे और लोग एकजुट होकर काम करेंगे।”

राजा ने सोचा, “यह तो बहुत अच्छा विचार है। इससे मेरे राज्य का प्रशासन और मजबूत होगा।”

दूसरा विद्वान मुस्कुराया और बोला, “महाराज, मैं ऐसा आविष्कार कर सकता हूँ जिससे लोग बिना भोजन के ही ऊर्जा प्राप्त कर सकें। इससे आपके राज्य की जनता को भोजन की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी, और वे अधिक से अधिक काम कर सकेंगे।”

राजा यह सुनकर हैरान रह गया और बोला, “यह तो अद्भुत है! अगर तुम यह कर सकते हो, तो मेरे राज्य की सबसे बड़ी समस्या हल हो जाएगी।”

दोनों विद्वानों ने अपनी-अपनी योजनाएँ राजा के सामने प्रस्तुत कीं। राजा असमंजस में था कि किसका विचार अधिक लाभदायक होगा। दोनों ही योजनाएँ उसे राज्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी लगीं।

राजा ने सोचा कि इन दोनों विद्वानों को एक चुनौती देनी चाहिए। उसने कहा, “मैं तुम दोनों को एक महीने का समय देता हूँ। जो भी अपनी योजना को सफलतापूर्वक पूरा कर लेगा, वही राज्य का प्रमुख विद्वान बनेगा।”

समय बीतता गया। पहले विद्वान ने अपने उपकरण को बनाने में मेहनत शुरू की, जबकि दूसरे ने लोगों के लिए बिना भोजन के ऊर्जा प्राप्त करने की विधि पर काम किया। महीना बीत गया और दोनों अपने-अपने आविष्कार लेकर राजा के सामने उपस्थित हुए।

पहले विद्वान ने एक अनोखा यंत्र पेश किया, जो लोगों को एक दूसरे से तुरंत संवाद करने की शक्ति देता था। राजा और दरबारियों ने इसे देखकर आश्चर्य व्यक्त किया। यह सच में क्रांतिकारी था।

फिर दूसरे विद्वान ने अपना आविष्कार प्रस्तुत किया – एक खास द्रव्य, जो बिना भोजन के शरीर को ऊर्जा प्रदान करता था। राजा ने इसे खुद आजमाया, और उसे तुरंत ताजगी महसूस हुई। दरबार में सब चकित थे।

लेकिन तभी, कुछ अजीब होने लगा। जिन लोगों ने द्रव्य का सेवन किया, उनके शरीर में कुछ असामान्य बदलाव दिखने लगे। कुछ लोग अचानक कमजोर हो गए, और कुछ का चेहरा विकृत हो गया। हड़कंप मच गया।

दूसरे विद्वान के चेहरे पर अचानक एक शातिर मुस्कान आ गई। उसने कहा, “महाराज, मैंने अपने आविष्कार में एक छोटा सा बदलाव किया है। यह द्रव्य शरीर की ऊर्जा चुरा लेता है और उसे मुझे देता है। अब मैं सबसे शक्तिशाली बन जाऊंगा!”

राजा स्तब्ध रह गया। तभी पहले विद्वान ने तुरंत अपने उपकरण का उपयोग किया और अपने संवाद यंत्र के माध्यम से सभी को चेतावनी दी। उन्होंने सभी को बचाने की योजना बनाई और दूसरे विद्वान के द्रव्य के असर को उलटने का तरीका ढूंढा। धीरे-धीरे लोगों की हालत सुधरने लगी।

राजा ने तुरंत आदेश दिया कि दूसरे विद्वान को गिरफ्तार कर लिया जाए। विद्वान की सच्चाई सबके सामने आ चुकी थी। उसे राज्य से निष्कासित कर दिया गया।

पहले विद्वान को राजा ने न केवल राज्य का प्रमुख विद्वान नियुक्त किया, बल्कि उसकी सूझबूझ और सेवाभाव के लिए उसे पूरे राज्य में सम्मानित किया गया। राज्य में उसका आविष्कार तेजी से फैलने लगा और लोगों का जीवन आसान हो गया।

कहानी के अंत में, राजा ने कहा, “सच्चा विद्वान वह होता है जो अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करता है, न कि उन्हें नुकसान पहुँचाने के लिए।”

और इस तरह, पहला विद्वान राज्य का महानायक बन गया, जबकि दूसरा अंधकार में खो गया। इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि शक्ति और ज्ञान का सही उपयोग ही सच्ची महानता की पहचान है।

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