मुन्सी प्रेमचंद का जीवन परिचय premchand ka jivan parichay
premchand ka jivan parichay: मुन्सी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक थे। इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव, प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए प्रसिद्ध बांग्ला उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था।
मुन्सी प्रेमचंद का जीवन परिचय premchand ka jivan parichay
प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही गाँव में 30 जुलाई 1880 को हुआ था हुआ था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था और पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकिया थे।
मुंसी प्रेमचंद का बचपन
मुन्सी प्रेमचंद का बचपन काफी संघर्षों से गुजरा था, जब मुंशी प्रेमचंद्र 7 वर्ष के थे, तब उनकी माँ की मृत्यु एक बहुत ही गंभीर बीमारी के कारण हो गई थी। मुंशी प्रेमचंद को बचपन में माँ का प्यार नहीं मिला। मुंशी प्रेमचंद के पिता सरकारी नौकरी में थे, उनका तबादला गोरखपुर हो गया। वहां जाकर प्रेमचंद के पिता ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली माँ ने मुंशी प्रेमचंद को कभी अपना बेटा नहीं माना।
प्रेमचंद की शिक्षा
मुंशी प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा 7 वर्ष की उम्र में उनके ही गांव लमही के एक छोटे से मदरसे में हुई। प्रेमचंद जी ने हिन्दी और उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था। प्रेमचंद जी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था।
उनकी शिक्षा उर्दू और फ़ारसी से शुरू हुई और अध्यापन से जीविका चलाने के लिए उन्हें बचपन से ही पढ़ने का शौक हो गया। 13 साल की उम्र में उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरूबा पढ़ा और मशहूर उर्दू लेखक रतननाथ ‘शरसार’, मिर्जा हादी रुसवा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय हुआ।
1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक नियुक्त हो गये। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शनशास्त्र, फारसी और इतिहास में इंटरमीडिएट पास किया और 1919 में उन्होंने बी.ए. पूरा किया। उत्तीर्ण करने के बाद वे शिक्षा विभाग के निरीक्षक पद पर नियुक्त हुए।
प्रेमचंद का वैवाहिक जीवन
सात वर्ष की आयु में माता और चौदह वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उनकी पहली शादी, उन दिनों की परंपरा के अनुसार, पंद्रह वर्ष की उम्र में हुई, जो सफल नहीं रही। वे आर्य समाज से प्रभावित थे जो उस समय का एक बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और 1906 में अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया। उनके तीन बच्चे थे – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
इसके बाद घर की सारी जिम्मेदारी प्रेमचंद के कंधों पर आ गई। इस भयानक विपत्ति के कारण प्रेमचंद को अपनी कुछ कीमती चीज़ें बेचकर कुछ समय तक घर चलाना पड़ा। पैसों की कमी के कारण उन्होंने अपना दरबार और पुस्तकें भी भेजी थीं। अपने पिता की मृत्यु के कुछ समय बाद प्रेमचंद जी ने अपनी पत्नी को तलाक देकर दूसरी शादी कर ली थी।
अपनी पहली पत्नी से तलाक लेने के बाद मुंशी प्रेमचंद ने 1906 में दूसरी शादी की, उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था। शिवरानी देवी के तीन बच्चे थे जिनके नाम श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी थे। शिवरानी देवी के पिता एक जमींदार थे जो फ़तेहपुर के पास एक छोटे से गाँव में रहते थे।
विवाद
1910 में, हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने उन्हें उनकी रचना सोज़े-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए बुलाया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियां जब्त कर नष्ट कर दी गईं।
कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वह कुछ नहीं लिखेंगे, अगर लिखा तो जेल भेज दिये जायेंगे। इस समय तक प्रेमचंद धनपत राय के नाम से लिख रहे थे। उर्दू में प्रकाशित ज़माना पत्रिका के संपादक और उनके घनिष्ठ मित्र मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। इसके बाद उन्होंने प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया।
उन्होंने अपना आरंभिक लेखन ज़माना पत्रिका में ही किया। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गये। उनका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा नहीं हो सका और लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनकी मृत्यु हो गई। उनका आखिरी उपन्यास मंगल सूत्र उनके बेटे अमृत ने पूरा किया था।
मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ – premchand ki rachnayen
मुंसी प्रेमचंद की की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं –
उपन्यास-
वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, काया कल्प निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान और मंगल
सूत्र (अपूर्ण)।
मुंशी प्रेमचंद की कहानियां (Premchand Ki Kahaniyan)
प्रेमचंद जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ इस प्रकार हैं-
दो बैलों की कथा
पंच परमेश्वर
ईदगाह
नरक का मार्ग
निर्वासन
पूस की रात
नमक का दरोगा कफन
अनाथ लड़की
आत्माराम
इस्तीफा
कप्तान साहब
कर्मों का फल
बड़े घर की बेटी
बंद दरवाजा
स्वर्ग की देवी
कातिल
घमंड का पुतला
आखिरी मंजिल
अमृत
क्रिकेट मैच (इसका प्रकाशन उनकी मृत्यु के बाद किया गया)
नाटक –
कर्बला, युद्ध और प्रेम की देवी।
निबंध संग्रह –
कुछ विचार, विभिन्न विषय।
इत्यादि ।
भाषा शैली-
प्रेमचंद जी की भाषा के दो रूप हैं – एक रूप वह है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है और दूसरा रूप वह है जिसमें उर्दू, संस्कृत और हिंदी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है।
यह भाषा अधिक जीवंत, व्यावहारिक एवं प्रवाहपूर्ण है। उनकी भाषा स्वाभाविक, सरल, व्यावहारिक, प्रवाहपूर्ण, मुहावरेदार और प्रभावशाली है। विषय और भाव के अनुसार शैली बदलने में प्रेमचंद माहिर थे।
उन्होंने अपने साहित्य में मुख्यतः पाँच शैलियों का प्रयोग किया है- (1) वर्णनात्मक, (2) विश्लेषणात्मक, (3) मनोवैज्ञानिक, (4) हास्य एवं व्यंग्यात्मक शैली तथा (5) भावात्मक शैली।
प्रेमचंद की मृत्यु
प्रेमचंद ने अध्यापन कार्य छोड़ने के बाद 18 मार्च 1921 को बनारस आ गये। यहां उन्होंने केवल साहित्यिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया। नौकरी छोड़ने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति भी ख़राब होने लगी. भारत के असहयोग आंदोलन का समर्थन करने के लिए महात्मा गांधी के अनुरोध पर उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को बनारस में हुई थी।
उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने उन पर एक किताब भी लिखी थी जिसका नाम था – प्रेमचंद घर में। अगर आप प्रेमचंद की विस्तृत जीवनी पढ़ना चाहते हैं तो आप प्रेमचंद के घर पर किताब भी पढ़ सकते हैं।
इन्हें पढ़ें –