दो भाइयों की कहानी

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एक बार की बात है एक गांव में दो भाई रहते थे। उन्हें अपने पिता की जमीन विरासत में मिली थी। इस जमीन के बीच में एक छोटी सी पहाड़ी थी जो जमीन को बराबर बराबर दो हिस्सों में बाँट रही थी। दोनों भाइयों ने जमीन को आपस में बांट लिया, एक भाई ने पहाड़ी एक इस तरह और एक ने दूसरी तरफ वाली जमीन ली, और हर एक ने अपने-अपने हिस्से में खेती करनी शुरू कर दी।

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समय बीतता गया, बड़े भाई की शादी हो गई और उसके छह बच्चे हुए, जबकि छोटे भाई ने कभी शादी नहीं की।

एक रात की बात है छोटा भाई बिस्तर पर लेटा हुआ था, तभी उसके दिमाग में एक खयाल आया “यह उचित नहीं है कि हम में से प्रत्येक के पास खेती के लिए आधी जमीन है,” उसने सोचा। “मेरे भाई के छह बच्चे हैं और मेरे पास एक भी नहीं है। उसका खर्च ज्यादा है इसलिए उसके पास मुझसे ज्यादा अनाज होना चाहिए।”

उस रात छोटा भाई अपने खलिहान में गया और गेहूं का एक बड़ा बंडल इकट्ठा किया। उसे लेकर वह अपने भाई के खेत में चला गया। अपने भाई के खलिहान में गेहूँ छोड़कर छोटा भाई अपने आप को प्रसन्न महसूस करते हुए घर लौट आया।

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इससे पहले उसी रात बड़ा भाई भी लेटा हुआ था। “यह उचित नहीं है कि हम में से प्रत्येक के पास खेती के लिए आधी जमीन है,” उसने भी सोचा। “मेरे बुढ़ापे में मेरी पत्नी और मेरे बच्चे बड़े होंगे जो हमारी देखभाल करेंगे, पोते पोतियां भी होंगी, जबकि मेरे भाई के पास शायद कोई नहीं होगा। उसे कम से कम अब खेतों से अधिक अनाज बेचना चाहिए ताकि वह अपना भरण-पोषण कर सके। और उसके बुढ़ापे में भी उसके पास पैसों की कोई कमी न रहे।”

उसी रात बड़ा भाई भी अपने खेत में गया और चुपके से गेहूँ का एक बड़ा गट्ठर इकट्ठा किया और अपने छोटे भाई के खलिहान में अनाज छोड़ दिया और अपने आप को प्रसन्न महसूस करते हुए घर लौट आया।

अगली सुबह, जब छोटा भाई अपने खलिहान में गया तो अनाज की मात्रा अपरिवर्तित देखकर चकित रह गया। “मैंने जितना सोचा था उतना गेहूं बड़े भाई के खलिहान में नहीं रखा होगा,” उसने अपने आप से कहा, “आज रात मैं और अधिक अधिक अनाज ले जाकर रखूँगा। ”

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उसी क्षण, उसका बड़ा भाई भी अपने खलिहान में खड़ा था, वही विचार कर रहा था।

रात होने के बाद, प्रत्येक भाई ने अपने अपने खलिहान से अधिक मात्रा में गेहूं इकट्ठा किया और अंधेरे में चुपके से अपने भाई के खलिहान में पहुंचा दिया। अगली सुबह अपने अपने अनाज की अपरिवर्तित मात्रा को देखकर दोनों भाई फिर से हैरान थे।

“मैं कैसे गलत हो सकता हूँ?” हर एक ने अपना सिर खुजलाया।

“मेरे भाई के लिए अनाज ले जाने से पहले जितना अनाज था, उतना ही यहाँ है। यह असंभव है! आज रात मैं कोई गलती नहीं करूँगा – मैं ढेर को गाड़ी पर लादकर ले जाऊँगा। इस तरह निश्चय ही अनाज मेरे भाई को मिल जाएगा।”

तीसरी रात, पहले से कहीं अधिक दृढ़, प्रत्येक भाई ने अपने खलिहान से गेहूं का एक बड़ा ढेर इकट्ठा किया, उसे एक गाड़ी में लाद दिया, और धीरे-धीरे खेतों के माध्यम से पहाड़ी की दूसरी तरफ अपने भाई के खलिहान के लिए चल पड़े। चांदनी रात थी , पहाड़ी की चोटी पर, चंद्रमा की छाया के नीचे, प्रत्येक भाई ने दूर से एक आकृति देखी। यह कौन हो सकता है?

दोनों भाइयों ने एक दूसरे भाई के रूप को पहचाना और दोनों एक दूसरे के अनाज को देखकर समझ गए की आखिर क्या हुआ था।

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एक शब्द बिना कहे, उन्होंने गाड़ियों को छोड़कर एक दूसरे को गले से लगा लिया।

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