शब्दों की शक्ति
शब्द अनमोल हैं, परन्तु इनमें अतुलनीय शक्ति होती है। हम सामन्य जीवन में अक्सर बहुत से शब्द बिना सोचे समझे बोल जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सुनते समय सामने वाले ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो उसपर उन शब्दों का प्रभाव न पड़ा हो। कभी कभी जुबान से निकले हुए एक शब्द से बहुत कुछ परिवर्तित हो जाता है, यह समय और परिस्थिति पर निर्भर करता है।
हमें कभी भी किसी को कुछ बोलने से पहले उसे तीन बार सोचना चाहिए। यूँ कह लीजिए की शब्दों को मुख रूपी गृह से बाहर लिकालने से पहले उन्हें तीन द्वार से गुजरने देना चाहिए। पहले द्वार पर, अपने आप से पूछो, ‘क्या यह सच है?’ दूसरे द्वार पर पूछो, ‘क्या यह आवश्यक है?’ तीसरे द्वार पर, पूछो, ‘क्या यह उसके लिए लाभप्रद है?’
वास्तव में यह कितना बुद्धिमान होने जैसी बात है, और शायद ही कभी इसका पालन किया जा सकता है। हम बहुत बार लापरवाह होते हैं और बिना सोचे समझे कुछ भी बोलते हैं। परन्तु ऊपर कही गयी बाते उलझनें पैदा करती हैं। यदि पहले और दूसरे प्रश्न का उत्तर ‘हां’ है, और तीसरे का उत्तर ‘नहीं’ है, तो फिर क्या करना चाहिए ?
क्या इसका मतलब यह है कि किसी को खुलकर नहीं बोलना चाहिए? ज्ञानी कहते है कि जब कोई स्पष्ट नहीं होता है, तो वह या तो सावधान, या बेईमान या चतुर या फिर बदतर, होता है, या फिर वह ये तीनों हो सकता है। यदि बेबाक तरीके से आप किसी से कठोर सच बोलते हैं, तो केवल यह एक ऐसे रिश्ते में आवश्यक हो सकता है जो शब्दों से आहत होने से परे विकसित हुआ हो। विश्वास, प्यार और समझ पर आधारित ऐसा रिश्ता, जहां इस तरह की बेबाकी से रिश्ते मजबूत होते हैं। और, यहाँ भी, निर्मलता को नम्रता से अपमानित होना पड़ता है।
अन्यथा, यदि तीसरे द्वार पर उत्तर ‘नहीं’ है, तो आपको पीछे हटने की सलाह दी जाती है। दुनिया में शब्दों और कर्मों में काफी क्रूरता है। आप जो कुछ भी कहते हैं वह सच होना चाहिए, परन्तु हमेशा सब कुछ सच नहीं कहा जाना चाहिए। विवेक एक गुण है, जिसका कार्य ऐसी स्थितियों में जीभ को नियंत्रित करना है।
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