‘सफल जीवन’ क्या होता है ?
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु जी से पूछा – गुरु जी ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है ?
गुरु जी अपने शिष्य को आश्रम के बाहर खाली मैदान में पतंग उड़ाने ले गए। वह शिष्य बड़े ध्यान से गुरु जी को पतंग उड़ाते देख रहा था।
थोड़ी देर वह शिष्य बोला – गुरु जी, ये पतंग इस धागे की वजह से अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? इससे ये और भी ऊपर चली जाएगी|
शिष्य की बात पर गुरु जी ने धागा तोड़ दिया।
हवा चल रही थी। धागा तोड़ते ही पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आने लगी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई।
तब गुरु जी ने शिष्य को जीवन का दर्शन समझाया – शिष्य ‘जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर होते हैं, हमें अक्सर यह लगता है कि कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही है, जैसे -घर-परिवार, माता-पिता, गुरू,समाज और अनुशासन, और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं।
पर वास्तव में यही वो धागे हैं – जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। ‘इन धागों को तोड़कर शायद हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वही हश्र होगा, जो बिना धागे की इस पतंग का हुआ’।
“इसलिए जीवन में यदि तुम सदा ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों को तोड़ने की कोशिश मत करना”। हे शिष्य, धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही ‘सफल जीवन’ कहते हैं।
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