अपनी सही कीमत पहचानें

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गौतम बुद्ध प्रेरक कहानी हिंदी में – Gautam Buddha Motivational Story in Hindi

Gautam Buddha Motivational Story in Hindi

Gautam Buddha Motivational Story in Hindi

एक समय की बात है। महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे। एक युवक बुद्ध के पास गया और प्रणाम करके बोला, “प्रभु, मैं बहुत भ्रमित हूँ। जितना अधिक मैं इसके बारे में सोचता हूं, उतना ही भ्रमित हो जाता हूं।

“क्या भ्रम है, वत्स?” बुद्ध ने पूछा।

युवक ने हाथ जोड़कर कहा – “प्रभु, यह संसार कितना विशाल है। संसार में करोड़ों लोग रहते हैं। उनमें एक से बढ़कर एक विद्वान, कलाकार और योद्धा हैं। ऐसे में मेरे जैसे एक साधारण व्यक्ति का क्या मूल्य है?”

युवक की बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए। उन्होंने कहा, “आपकी जिज्ञासा का उत्तर दिया जाएगा।” लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा। तब तक क्या आप मेरा एक छोटा सा काम कर सकते हैं?

“यह मेरे लिए गर्व की बात है, आप मुझे आज्ञा दें, प्रभु।” युवक ने कहा।

बुद्ध ने युवक को एक चमकता हुआ पत्थर दिया और कहा, “तुम्हें इस पत्थर का मूल्य पता लगाना होगा।” लेकिन ध्यान रहे, इसे बेचना नहीं है, सिर्फ कीमत जानना है।

युवक ने बुद्ध से यह कहते हुए वह पत्थर ले लिया, “जैसी प्रभु आज्ञा।” उसने एक बार फिर उसे प्रणाम किया और बाजार की ओर चल पड़ा।

उसने एक पेड़ के नीचे एक दुकानदार को देखा। वह आम बेच रहा था। युवक दुकानदार के पास पहुंचा और उसे वह पत्थर दिखाते हुए बोला, “क्या आप इस पत्थर की कीमत बता सकते हैं?”

दुकानदार चतुर व्यक्ति था। पत्थर की चमक देखकर वह समझ गया कि जरूर कोई कीमती पत्थर होगा। उसने बनावटी आवाज में कहा, “ज्यादा तो नहीं लगता, लेकिन बदले में मैं 10 आम दे सकता हूं।”

वह व्यक्ति पत्थर लेकर चुपचाप आगे बढ़ गया।

सामने एक सब्जी वाला अपनी दुकान सजा रहा था। युवक ने उसके पास जाकर पत्थर दिखाया और उसकी कीमत पूछी। उस पत्थर को देखकर सब्जीवाले की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह मन ही मन सोचने लगा – “यह पत्थर तो बड़ा कीमती मालूम पड़ता है। मिल जाए तो मजा आ जाए।”

सब्जी वाले ने कहा, मैं इस पत्थर के बदले एक बोरी आलू दे सकता हूँ।”

सब्जी वाले के चेहरे को देखकर युवक समझ गया कि वः सब्जीवाला भी उसे बेवकूफ बना रहा है। मुझे इसकी कीमत किसी और से पता करनी चाहिए। यह सोचकर युवक आगे बढ़ गया।

युवक को लग रहा था कि यह बेशकीमती है, शायद कोई सोनार इसकी सही कीमत बता सके।

यह सोचकर युवक एक सोनार की दुकान पर पहुंचा। सोनार अभी अपनी दुकान खोल रहा था। युवक की शक्ल देखकर उसे भी अंदाजा हो गया था कि यह कोई गरीब व्यक्ति है, जो शायद कोई जेवर बेचने आया होगा।

सोनार को युवक ने बुद्ध द्वारा दिए गए पत्थर को दिखाया और बोला “मैं इसका मूल्य जानना चाहता था।”

रत्न को देखते ही सोनार ने कहा, “मुझे पत्थर दे दो और मैं तम्हे इसके पचास हजार रूपये दे सकता हूँ।

सुनार की बात सुनकर उस व्यक्ति को लगा कि यह जरूर कोई बेशकीमती पत्थर है।

पत्थर की असली कीमत जानने के लिए वह व्यक्ति आगे बढ़ चला। उसे एक जौहरी की दुकान दिखाई पड़ी। जौहरी के पास जाकर उस व्यक्ति ने उस पत्थर को दिखाया, जौहरी उस व्यक्ति को देखते ही समझ गया कि यह कोई गरीब आदमी है जो कुछ न कुछ बेचने आया है।

जौहरी उस पत्थर को देखते ही समझ गया कि यह पत्थर कोई मामूली पत्थर नहीं है यह तो बेशकीमती रूबी है।

जौहरी ने कहा मैं तुम्हें इस पत्थर के एक लाख रूपये दे सकता हूं। जोहरी की बात सुनकर उस व्यक्ति को लगा कि यह वाकई में कोई बहुत बेशकीमती पत्थर है। उसे पत्थर की कीमत का एहसास हुआ, इसलिए वह बुद्ध के पास जाने के लिए मुड़ा।

जौहरी ने उसे पीछे से आवाज़ दी, “अरे रुको भाई, मैं इसे 50 लाख दे सकता हूँ।”

युवक उस पत्थर को बेचना नहीं चाहता था, इसलिए वह रुका नहीं और आगे बढ़ गया। तभी जौहरी दौड़ता हुआ उनके सामने आया और हाथ जोड़कर बोला, “आप मुझे यह पत्थर दे दो, मैं इसके लिए 1 करोड़ देने को तैयार हूं।”

युवक को अब जौहरी की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी। वह जल्द से जल्द बुद्ध के पास पहुंचना चाहता था। इसलिए न तो वह रुका और न ही जौहरी की बात का कोई जवाब दिया। वह तेज कदमों से बुद्ध के आश्रम की ओर चल पड़ा।

जौहरी ने पीछे से पुकारा, “यह बहुत कीमती पत्थर है, यह अनमोल है।” आप जितना कहेंगे उतना पैसा दूंगा।

अब वह व्यक्ति जुआरी की बातों की अनसुना करके आश्रम की तरफ चल पड़ा।

युवक जब बुद्ध के पास पहुंचा तो वह बुरी तरह हांफ रहा था। बुद्ध उसे देखकर मुस्कुराए और बोले, “क्या बात है वत्स?”

युवक ने बुद्ध को प्रणाम किया और सारी बात कह सुनाई। साथ ही उसने वह पत्थर भी उन्हें लौटा दिया।

बुद्ध ने कहा, “आम बेचने वाले ने इसकी कीमत ’10 आम’, आलू बेचने वाले ने ‘बोरी आलू’ सुनार ने 50 हजार और जौहरी ने कहा कि यह ‘अनमोल’ है।” जिसने इस पत्थर के गुणों को जितना समझा, उसी के अनुसार उसने इसकी कीमत आंकी। ऐसे ही जीवन है। हर कोई एक निकाले गए हीरे की तरह है जिसे अभी तक तराशा नहीं गया है। जैसे-जैसे समय की धार व्यक्ति को तराशती है, व्यक्ति का मूल्य बढ़ता जाता है। ये दुनिया इंसान को जितना ज्यादा पहचानती है, उतनी ही ज्यादा अहमियत देती है।

यह कहकर बुद्ध एक क्षण के लिए रुके, फिर बोले, “…लेकिन एक व्यक्ति और एक हीरे के बीच का अंतर यह है कि हीरे को कोई और तराशता है, और एक व्यक्ति को खुद को तराशना पड़ता है।” और जिस दिन आप स्वयं को तराशेंगे उस दिन आपको कोई जौहरी भी मिल जाएगा जो आपकी सही कीमत बताएगा।

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