क्रोध पर विजय
जीवन में प्रतिदिन हमारे सामने ऐसी अनेक परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है जिनसे हमारे मन में क्रोध उत्पन्न होता है । सामान्यतः कभी-कभी हम तब क्रोधित होते हैं जब कोई हमें चोट पहुँचाता है या अपनी बातों या व्यवहार से हमें नाराज़ करता है। अक्सर कई ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें दूसरों को चोट पहुँचते हुए या किसी प्रकार की नइंसाफ़ी देखकर भी हमें क्रोध आ जाता है।
कई बार हमें सामाजिक अन्याय के मामले भी देखने को मिल जाते हैं, जिनमें समाज में व्यक्तियों का एक समूह अन्याय सह रहा होता है, और अन्याय दूसरा करने वाला होता है। ऐसे सभी मामलों में, हमें लगता है कि कुछ गलत हो रहा है। और हो सकता है कि जो कुछ घट रहा है, उसे हम अनदेखा न कर पाएँ। फर्क इस बात में है कि हम उस अन्याय के प्रति किस प्रकार की प्रतिक्रिया करते हैं?
हम किसी के गलत होने और सही होने के फैसले को तुरंत कर लेते हैं। हम फैसला करने की क्षमता रखते हैं। और हम बहुत जल्द क्रोध से ही प्रतिक्रिया करते हैं। परन्तु थोड़ा सा रूककर सोचा जाये तो हम अपने क्रोध पर नियंत्रण रखकर ,उसे प्रेम में बदल सकते हैं।
क्रोध पर विजय
हम अपने मन के क्रोध की आग को प्रेम से शांत कर सकते हैं। बात-विवाद या झगड़े के दौरान, क्रोध भरी आवाज़ में बोलने के बजाय, हमें मिठास का मरहम लगाना चाहिए जिससे दूसरों का क्रोध शांत ठंडा हो सके। वातावरण में क्रोध-भरे विचारों की तरंगों को बढ़ावा करने के बजाय, हम प्रेम-भरे विचारों की तरंगो को प्रसारित करें ताकि वातावरण साफ और मिठास भरा हो जाए।
क्रोध भरी प्रतिक्रिया करने में हमारी बहुत ऊर्जा खर्च होती है। और ऐसी प्रतिक्रिया हमें क्षीण, शक्तिहीन और विवेकहीन कर देती है। परन्तु , अगर हम अपनी ऊर्जा प्रेममयी प्रतिक्रिया में लगाएँगे तो उससे न केवल हम परिस्थिति में समन्वय ले आएँगे, बल्कि हम स्वयं भी उस प्रेम से ऊर्जा प्राप्त कर पायेंगे। जब हम प्रेम से व्यवहार करना आरम्भ करते हैं तो हम, एक प्रेममयी दरवाजे को खोलते हैं ताकि प्रभु-प्रेम हमारे अंदर प्रवाहित हो। और हम प्रभु-प्रेम से ऊर्जा और उभार पाते हैं।
अगली बार जब हम स्वयं को ऐसी परिस्थिति में पाएँ जहाँ अन्याय हो रहा हो तो हमें क्रोध के बजाय, प्रेम से प्रतिक्रिया करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करते है तो हम अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया का उस माहौल और अपने आप पर, दोनों पर हुए असर को अवश्य देख सकते हैं।इस संसार में बहुत क्रोध विद्यमान है। इस संसार में समन्वय और शांति लाने की आवश्यकता है।
हमें क्रोध को प्रेम से जीतना होगा। जब क्रोध को प्रेम से जीतना सीख लेंगे तो हम देखेंगे कि हमारा ऐसा कृत्य, एक तरंग और ऊर्जा बनकर औरों तक पहुँचेगा और वह दिन दूर नहीं होगा, जब हमारा समाज, हमारा वातावरण और हमारा समुदाय, इस संसार में शांति का आश्रय बन जाएगा। यह सब तभी संभव है जब हम क्रोध पर विजय प्राप्त करेंगे और हर परिस्थिति में अपने मन में सिर्फ प्रेम ही धारण करेंगे।
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