Shikshaprad Laghu Katha
एक बार इंद्र देव नाराज हो गए, उन्होंने ने दस साल वर्षा न करने का फैसला किया। सारे किसान परेशान हो गए उन्होंने इंद्र की पूजा करनी शुरू कर दी। इंद्र देव आ गए, सारे किसान उनसे वर्षा करने की विनती करने लगे। इंद्रदेव ने कहा – अब से दस वर्ष तक वर्षा नहीं होगी।
किसानों के बार बार बिनती करने पर इंद्र देव ने कहा – वर्षा तभी होगी जब भगवान शंकर का डमरू बजेगा। इसलिए तुम लोग भगवान शंकर से डमरू बजाने के लिए प्रार्थना करो।
इधर इंद्रदेव ने भगवान शंकर को पहले ही सारा वृतांत सुना दिया और दस वर्ष तक डमरू न बजाने के लिए प्रार्थना किये। भगवान शंकर मान गए।
किसानों की विनती पर भगवान शंकर प्रसन्न हुए। किसानों ने उनसे डमरू बजाने के लिए आग्रह किया। भगवान शंकर ने दस वर्ष के पश्चात डमरू बजाने के लिए कहा और अपने धाम चले गए।
किसान उदास हो गए और खेती करना बंद कर दिए, क्योंकि उन्हें पता था की दस वर्ष तक वर्षा नहीं होगी, तो फिर खेती करने का क्या फायदा, बिना जल के फसल भला कैसे होगी। उन सब किसानों में एक किसान ऐसा था जो ये जानते हुए भी कि दस वर्ष तक वर्षा नहीं होगी, वह अपने खेत को पिछले वर्ष की भांति ही जोतना, बोना शुरू कर दिया। उसे देखकर बाकी के किसान हॅसते थे और उसका मजाक उड़ाते थे।
उस किसान को ऐसा करते तीन साल हो गए थे। बिना वर्षा के फसल तो होती नहीं थी परन्तु वह हर साल की भांति इस साल भी अपने खेत को जोतने और बीज की बुवाई करने लगा। सारे किसान इसबार उसके पास पहुंचे और उससे ऐसा करने का कारण पूंछने लगे। उस किसान ने उन्हें बताया कि मैं जनता हूँ की वर्षा दस वर्ष के बाद होगी, और दस वर्ष बहुत लम्बा होता है, मैंने खेती करना जारी इसलिए रखा, जिससे मैं खेती करने का हुनर भूल न जाऊं, मेरा अभ्यास हमेशा बना रहे, और मेरा शरीर उस मेहनत के लिए हमेशा तैयार रहे। और हर बार जुताई होने से मेरा खेत भी बंजर नहीं होगा।
माता पार्वती भगवान शंकर के पास गयीं और उस किसान की बात बताने लगी कि कैसे वह किसान अपने अभ्यास को बनायें रखने के लिए बिना वर्षा के, हर वर्ष खेती करता है। उसके बाद माता पार्वती ने भगवान शंकर से कहा कि हे नाथ, आपको डमरू बजाये हुए तीन वर्ष हो गए, कहीं आप भी डमरू बजाना भूल तो नहीं गए। इस पर भगवान शंकर तुरंत डमरू को हाथ में लेकर बजाना शुरू कर दिए और बोले देखो देवी, मैं डमरू बजाना भूला नहीं हूँ।
भगवान शंकर के डमरू की नाद सुनते ही वर्षा होने लगी। वह किसान जिसने अपने खेत की जुताई बुवाई कर रखी थी, वर्षा होने से उसके खेत की फसल उगने लगी। उसे वर्षा के जल का पूरा लाभ मिला। बाकी के किसान जो अपने खेत की तीन वर्ष से जुताई भी नहीं किये थे उन्हें उस वर्षा का कोई लाभ नहीं हुआ।
परिस्थिति कैसी भी हो अपनी कार्य कुशलता के अभ्यास को कभी बंद नहीं करना चाहिए। निरंतर अभ्यास से आप अपनी कार्यकुशला में और भी ज्यादा प्रवीण होते जायेंगे। और इसलिए जीवन में सदैव तैयारी ही नहीं करनी चाहिए बल्कि हमेशा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि इस तरह तैयार रहने से आप परिस्थिति और अवसर का पूरा लाभ उठा सकते हैं।
Shikshaprad Laghu Katha
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