नेकी और दयालुता

नेकी और दयालुता Nekee aur Dayaaluta

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक गरीब लड़का रहता था। मोहन बहुत ही साधारण परिवार से था, लेकिन उसकी सोच और उसका दिल बहुत बड़ा था। उसके माँ-बाप ने उसे हमेशा सिखाया था कि जीवन में नेकी और दयालुता से बढ़कर कुछ नहीं होता। इसी कारण मोहन हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था, चाहे उसके पास खुद कुछ हो या न हो।

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नेकी और दयालुता Nekee aur Dayaaluta

एक दिन की बात है, मोहन जंगल में लकड़ी इकट्ठा करने गया। उसके घर में लकड़ियों की बहुत जरूरत थी, क्योंकि सर्दी का मौसम आने वाला था। मोहन ने सोचा कि अगर वह आज ही ज्यादा लकड़ियाँ इकट्ठा कर लेगा, तो कई दिनों तक उसे जंगल नहीं जाना पड़ेगा। वह अपने काम में इतना मग्न हो गया कि उसे यह पता ही नहीं चला कि वह कितनी दूर निकल आया है। जब उसने चारों तरफ देखा, तो वह हैरान हो गया कि वह रास्ता भूल चुका था।

मोहन के पास वापस गाँव लौटने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। उसने इधर-उधर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कहीं भी कोई पहचान का निशान नहीं मिला। मोहन थोड़ा घबरा गया, लेकिन उसने अपनी हिम्मत को बनाए रखा और सोचा कि कोई न कोई रास्ता जरूर मिलेगा। चलते-चलते मोहन को बहुत देर हो गई, और वह काफी थक गया था। अचानक उसे एक बूढ़े आदमी की आवाज सुनाई दी। मोहन उस आवाज की तरफ बढ़ा और देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति जमीन पर बैठा हुआ है। वह बहुत ही कमजोर और भूखा दिख रहा था।

मोहन को उस बूढ़े आदमी की हालत देखकर बहुत दुख हुआ। उसने देखा कि बूढ़ा आदमी बहुत ही थका हुआ है और उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। मोहन ने तुरंत अपनी थैली में देखा, जहाँ उसने अपने लिए थोड़ा-सा खाना रखा हुआ था। मोहन ने बिना कुछ सोचे-समझे उस बूढ़े आदमी के सामने अपना सारा खाना रख दिया और कहा, “बाबा, आप ये खा लीजिए। मुझे बाद में कहीं और से खाना मिल जाएगा।”

बूढ़े आदमी ने मोहन की इस उदारता को देखकर अपनी आँखों में आँसू भर लिए। उसने मोहन से कहा, “बेटा, तूने मुझे अपनी जरूरत का खाना देकर बहुत बड़ी नेकी की है। मैं तुझसे बहुत प्रभावित हुआ हूँ।” इतना कहकर वह बूढ़ा आदमी अचानक एक जादूगर में बदल गया। मोहन यह देखकर हैरान रह गया और सोचने लगा कि यह क्या हो रहा है।

जादूगर ने मुस्कुराते हुए मोहन से कहा, “मोहन, तूने जो नेकी और दयालुता दिखाई है, उसका इनाम तुझे जरूर मिलेगा। मैं तुझे एक चमत्कारिक खजाने का रास्ता दिखाने वाला हूँ। इस खजाने में इतना धन है कि तेरी सारी गरीबी दूर हो जाएगी और तू अपने गाँव की भी मदद कर पाएगा।”

मोहन ने जादूगर के दिखाए हुए रास्ते पर चलते हुए उस खजाने को ढूंढ निकाला। खजाना देखकर मोहन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह बहुत धनवान हो गया और उसके पास अब इतना पैसा था कि वह अपने परिवार के साथ आराम से जीवन जी सकता था। मोहन का दिल बहुत बड़ा था। उसने सोचा कि यह धन सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि पूरे गाँव के लिए है। उसने खजाने के एक हिस्से से गाँव में एक बड़ा स्कूल बनवाया, जहाँ सभी बच्चों को मुफ्त में शिक्षा मिल सके। इसके अलावा, उसने गाँव में एक अस्पताल भी बनवाया, जहाँ गाँव के सभी लोग मुफ्त में इलाज करवा सकें।

मोहन की इस उदारता और दयालुता से गाँव के लोग बहुत खुश हुए। उन्होंने मोहन की तारीफ की और उसे सम्मानित किया। मोहन की कहानी अब पूरे गाँव में फैल गई और हर कोई उससे प्रेरणा लेने लगा। लोगों ने समझा कि नेकी और दयालुता सिर्फ एक व्यक्ति का भला नहीं करती, बल्कि पूरे समाज को समृद्ध बनाती है। मोहन का यह कार्य गाँव में नेकी और सहायता की एक नई लहर ले आया, और गाँव के सभी लोग एक-दूसरे की मदद करने लगे।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जब हम बिना किसी स्वार्थ के नेकी और दयालुता का काम करते हैं, तो हमें उसका फल जरूर मिलता है। मोहन की तरह हमें भी हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि यह दुनिया नेकी और दयालुता के बिना नहीं चल सकती। आखिरकार, सच्ची खुशी और समृद्धि वही है जो हम दूसरों के भले के लिए करते हैं।

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