Monday, December 22, 2025

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कितना पुराना है अयोध्या मंदिर का विवाद 

कितना पुराना है अयोध्या मंदिर का विवाद 

अयोध्या मंदिर का विवाद  ayodhya temple

हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार अयोध्या प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली है। इतिहास में अयोध्या कौसल राज्य की राजधानी थी। अयोध्या एक हिन्दू धर्म की पवित्र और धार्मिक नगरी है और इस नगरी का उल्लेख बड़े-बड़े महाकाव्यों में भी मिलता है। अयोध्या में, त्रेता युग में भगवान विष्णु ने अधर्म और अन्याय के विनाश और धर्म की रक्षा के लिए दशरथ नंदन श्रीराम के रूप में अवतार लिया था।

मनु ने ७ पवित्र तीर्थस्थलों की स्थापना की जिसमें, अयोध्या उनमें से एक है। धर्मग्रंथों में अयोध्या को ईश्वर की नगरी कहके सम्बोधित किया गया है। इसके साथ ही भगवान श्री राम की जन्मस्थली होने की वजह से इस नगरी का अत्यंत महत्व है।

अयोध्या में भगवान श्रीराम ने कई वर्षो तक राज किया और लोगों को प्रेम, दया, मानवता और धर्म का पाठ पढ़ाया। तत्पश्चात अपने और अपने भाइयों के पुत्रों को राज्य सौंपकर उन्होंने ने सरयू नदी में अपने मानव देह को त्यागकर बैकुंठ लोक चले गए।

अयोध्या राम मंदिर का इतिहास 

1528 में मुगल वंश के संस्थापक बाबर के आदेश पर उनके सेनापति मीरबाकी  ने अयोध्या में रामजन्म भूमि पर बने भगवान राम के मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। और इसकी से लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई जिसकी वजह से बड़ी हिंसा हुई और बहुत से लोगों को जान गंवानी पड़ी। इस स्थल को लेकर विवाद बढ़ता गया, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। केस कई वर्षों तक चलता रहा। और यह भारतीय रजनींति का मुद्दा भी बनता रहा।

लम्बे समय तक चले केस के पश्चात सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और ५ अगस्त २०२० को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण हेतु भूमिपूजन करके नींव रखकर इतिहास रचा। लोगो ने बहुत ही उत्साह और उमंग साथ अपने अपने घरों में दीप जलाकर इस दिन का स्वागत किया।

राम मंदिर के विध्वंस और इसके शिलान्यास तक का संक्षिप्त इतिहास –

इतिहासकारों के अनुसार मुगल शासक बाबर 1526 में भारत पर शासन करने के लिए आया, एवं 1528 तक उसने अवध (अयोध्या) साम्राज्य की स्थापना की थी।

हिन्दुओं के आराध्य देव भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में बने श्री राम मंदिर को लेकर ऐसा कहा जाता है कि उस मंदिर को तोड़कर उस जगह पर मस्जिद का निर्माण करवाया।

कहा जाता है कि मस्जिद का निर्माण मुगल वंश के संस्थापक बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीरबाकी ने करवाया था। बाबर ने इसका निर्माण करवाया था इसलिए बाबर के नाम से इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।

पुरातत्विक विभाग द्वारा किए गए सर्वेक्षण में विभाग ने बाबरी मस्जिद की जगह पर मंदिर होने के संकेत मिलने का दावा किया था। पुरातत्विक विभाग के खोजकर्ताओं को जमीन के अंदर दबे खंभे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह के आधार पर यहां  मंदिर होने के सबूत मिले हैं।

असली विवाद 1949 से शुरू हुआ। ३ दिसंबर 1949 को  भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गयीं। इस पर मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर रात के अँधेरे में मूर्तियां रखने का आरोप लगाया। जबकि हिन्दू वर्ग भगवान राम के प्रकट होने की बात कहते थे। जिससे विवाद बढ़ गया और दोनों पक्षों ने कोर्ट में केस दायर किया। सरकार ने इसे विवादित स्थल बताकर मस्जिद में ताला लगा दिया।

1950  में गोपाल सिंह विशारद नाम के व्यक्ति ने फैजाबाद अदालत में अपील दायर कर भगवान राम की पूजा करने की इजाजत मांगी। जिसके बाद उस समय के सिविल जज एन. एन. चंदा ने यहां पूजा पाठ करने की इजाजत दे दी। हालांकि मुसलमानों ने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अर्जी दायर की।

1953 में निर्मोही अखाडा ने मंदिर वाली जगह पर मंदिर होने का दवा किया और साथ ही बाबर के कार्यकाल में मंदिर तोड़ने की बात कही उसी समय अयोध्या में हिन्दू मुस्लिम हिंसा भड़क गयी।

1954 में विवादित ढांचे के स्थान पर मंदिर बनाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया।

1986 में जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दओं को पूजा करने के लिए विवादित स्थल के दरवाजे से ताला खोलने का आदेश दे दिया। जिसके बाद मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई।

1992 में बीजेपी, वीएचपी, शिवसेना समेत अन्य हिन्दू संगठनो्ं एवं हजारों की तादात में कार सेवकों ने अयोध्या में बनी बाबरी मस्जिद को ढहा दिया, जिसके चलते हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच दंगे भड़क गए, इस संप्रदायिक दंगों में हजारों लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।

1994 में बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में केस चला।

1997 में इस मामले में बीजेपी पार्टी के कुछ दिग्गज नेताओं समेत 47 लोगों को दोषी ठहराया गया।

2002 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अयोध्या विवाद की वजह से हो रही हिंसक गतिविधियों को देखते हुए अयोध्या समिति का गठन किया। इसी साल 2002 में अयोध्या विवाद को लेकर केन्द्र सरकार और विश्व हिन्दू परिषद समझौता हुआ।

2003 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के मामले में उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाडी समेत 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया।

2005 में लाल कृष्ण आडवाणी को कोर्ट में पेश किया गया।  इसी साल जुलाई में ही अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में आतंकी हमले हुए, जिसमें 5 आंतकी समेत 6 लोग मारे गए।

2006 में अयोध्या के विवादित स्थल पर सरकार ने राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव रखा।

2009 में लिब्रहान आयोग ने बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने के मामले को लेकर उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी।

9 मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च 2017 में दोनों पक्षों को आपसी सहमति से अयोध्या विवाद सुलझाने की बात कही।

29 अक्टूबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई पर इनकार करते हुए जनवरी 2019 तक के लिए केस को टाल दिया।

16 अक्टूबर, 2019 में अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी हुई और फैसला कोर्ट में सुरक्षित रखा गया।

9 नवंबर, साल 2019 में देश के इस सबसे पुराने केस अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि, विवादित जमीन को राम मंदिर के निर्माण के लिए दिया जाए और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया। इस तरह देश के सबसे लंबे समय तक चलने वाले अयोध्या विवाद केस पर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया।

कई वर्षों तक लंबे चले विवाद के बाद, 5 अगस्त, साल 2020 में अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर भव्य राम मंदिर का शिलान्यास कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इतिहास रचा।

भव्य श्री राम मंदिर की आधारशिला रखने के लिए चांदी के फावड़े एवं चांदी की कन्नी का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा साथ ही ऐतिहासिक पल का गवाह बनने वाले सभी मेहमानों को एक-एक चांदी का सिक्का भी भेंट किया गया। इस दौरान पूरे देश में खुशी का महौल देखने को मिला। यह ऐतिहासिक पल समस्त भारतवासियों के लिए गौरवमयी और आनंददायी रहा।

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