पाप का बाप कौन है? Who is the father of sin?
तीन वीर क्षत्रिय किसी काम से कहीं जा रहे थे। रास्ते में उसने देखा कि एक राहगीर को रास्ते में किसी ने मार डाला है। इस घटना से दुखी होकर वह आगे बढ़ ही रहा था कि एक विधवा स्त्री दिखाई पड़ी। जिसकी सारी दौलत-धान्य अन्य लोगों ने छीन ली थी और उसे मारपीट कर घर से भगा दिया था। इस घटना ने उन्हें काफी पीड़ा पहुंचाई ।
पाप का बाप कौन है?Who is the father of sin? Story in Hindi
आगे बढ़ते हुए वे देखते हैं कि कुछ लोगों ने अनेक निरीह पशु-पक्षियों को मार कर एकत्र कर लिया है।
इससे आगे जाकर देखा तो झोपड़ी के बाहर एक किसान परिवार पड़ा फूट-फूट कर रो रहा था और जमींदार के आदमी उनके बर्तन, कपड़े तक ले जा रहे थे और किराए के लिए पीट रहे थे।
इन घटनाओं को देखकर उन तीनों का हृदय द्रवित हो गया और वे एक स्थान पर बैठकर सोचने लगे कि इस संसार में कैसे इतना पाप बढ़ रहा है जिससे लोग इस प्रकार दुखी हो रहे हैं।
उन्होंने सोचा कि बाद में अपना काम पूरा करेंगे, पहले यह पता करें कि इस पाप की उत्पत्ति कहां से हुई है? इसका बाप कौन है? अगर पाप के बाप को मार देंगे तो तब यह पाप दूर हो जाएगा।
इस बात पर तीनो सहमत हो गए और पाप की उत्पत्ति का स्थान जानने के लिए चल पड़े।
काफी दिनों तक वे अपनी तलाश में आगे बढ़ते रहे लेकिन कुछ पता नहीं चला।
एक दिन इन्होने एक बहुत ही अनुभवी और वृद्ध व्यक्ति को देखा। ये काफी थके हुए थे इन्होंने सोचा कि शायद इस बूढ़े से उन्हें पाप के बाप का पता चल जाएगा। उन सभी ने बूढ़े से प्रार्थना की कि वह उन्हें पाप के पिता का पता बता दे। बूढ़े ने ऊँगली दिखाकर पहाड़ की एक गुफा दिखाई और कहा-देखो, उस गुफा में पाप का बाप रहता है।
लेकिन सावधान रहना! वह आपको भी पकड़ सकता है।
तीनों मित्र बड़े साहसी और शस्त्रों से सुसज्जित थे। उन्होंने निश्चय किया कि ऐसे अधर्मी को दण्ड देना हम क्षत्रियों का धर्म है, अत: हम चलते ही उसे मार डालेंगे जिससे पाप स्वयं नष्ट हो जाए।
गुफा में पहुंचकर उन्होंने देखा कि वहां सोने के बड़े-बड़े ढेर लगे हैं। मानो सोना इधर-उधर पड़ा हो और इतनी चट्टानें हैं जिनसे हजारों मन सोना निकाला जा सके।
अब वे सारी बातें भूल गए और सोचने लगे कि इस सोने को घर कैसे ले जाया जाए। तय हुआ कि दिन में कोई देख लेगा, इसलिए रात में ले जाना बेहतर होगा। इस समय भोजन कर लेते हैं और फिर थोड़ा विश्राम कर लेते हैं। रात में चलेंगे। इस निश्चय के बाद दो साथी भोजन लेने चले गए और तीसरा उसी गुफा में बैठकर अन्य व्यवस्था करने लगा।
अब तीनों के मन में सोने का लोभ घर कर गया और वे सोचने लगे कि यदि बाकी दोनों मर गए तो सारा सोना वे अकेले ही पा लेंगे। लोभ बढ़ने लगा तो उनके मन में पाप का उदय हुआ। भोजन लेने जा रहे दो साथियों में से एक ने दूसरे पर तलवार से हमला कर रास्ते में ही मार डाला और छिपा लाश को दिया और तीसरे साथी के लिए लाए हुए भोजन में जहर मिला दिया ताकि वह उसे खा कर मर जाये, जिससे वह अकेला हो उस सोने को ले लेगा।
तीसरा भी उसका गुरु था, उसने पहले ही एक-एक करके उन्हें मारने का मन बना लिया था।
जो साथी खाना लेकर आया था तो तीसरे ने पीछे से चाकू से हमला कर वहीं मार डाला। अब वह अकेला ही बच गया था और यह सोचकर बहुत खुश था कि अब मुझे सारा सोना मिल जाएगा। उसने मन भरकर खाया, लेकिन जैसे ही वह भोजन से निवृत्त हुआ, उसके हाथ-पैर ऐंठने लगे और तीसरा भी कुछ देर पैर रगड़ने के बाद मर गया।
तो बताओ पाप का बाप कौन है – “लोभ” हम अपने यथार्थ जगत में भी देखते हैं कि जब लोभ प्रबल होता है तो मनुष्य अंधा हो जाता है और पाप और पुण्य में कोई अंतर नहीं देखता। जो लोग पाप से बचना चाहते हैं उन्हें लोभ से सावधान रहना चाहिए। लोभ के अवसर आने पर बुद्धि को सचेत रखना चाहिए कि मन मोह में न पड़े। लोभ के आते ही पाप की भावना बढ़ जाती है, क्योंकि लोभ पाप का बाप है।
दुनिया में पाने के लिए बहुत कुछ है लेकिन समय से पहले जरुरत से ज्यादा न तो मिला है और न ही मिलेगा। लालच का त्याग करो और हमेशा खुश रहो। जो प्राप्त है वही पर्याप्त है।