दया की कीमत The Price of Kindness
यह उन दिनों की बात है जब आइसक्रीम की कीमत बहुत कम हुआ करती थी। एक दिन, एक 10 साल का छोटा सा गरीब लड़का एक होटल की कॉफी शॉप में दाखिल हुआ और एक कोने की टेबल पर बैठ गया। वेट्रेस ने उसके सामने पानी का गिलास रखा और उसे देखने लगी।
लड़के ने मासूमियत से पूछा, “आइसक्रीम कितने का है?”
वेट्रेस ने बेमन से जवाब दिया, “25 रूपये।”
लड़के ने अपनी जेब में हाथ डाला और उसमें पड़े सिक्कों को ध्यान से गिनने लगा। फिर उसने सिर उठाकर कहा, “साधारण आइसक्रीम कितने की है?”
अब तक कुछ लोग बाहर लाइन में टेबल के इंतजार में खड़े थे, और वेट्रेस थोड़ी अधीर हो रही थी। उसने जल्दी से कहा, “15 रूपये ।”
लड़के ने फिर से अपने सिक्के गिने, और कुछ देर सोचने के बाद बोला, “तो फिर मैं साधारण आइसक्रीम लूंगा।”
वेट्रेस ने थोड़ा चिढ़ते हुए आइसक्रीम लाई, उसे टेबल पर रखा और चुपचाप बिल भी वहीं रखकर चली गई। लड़के ने अपनी आइसक्रीम खाई, फिर बिल चुकाने के लिए कैशियर के पास गया और होटल से बाहर चला गया।
जब वेट्रेस वापस आई और उसने टेबल साफ़ करना शुरू किया, तो उसकी नजर उस खाली प्लेट के बगल में पड़े कुछ सिक्कों पर पड़ी। उसे अचानक गले में एक भारीपन महसूस हुआ और आँखों में नमी आ गई।
वहां, बड़े ही सलीके से 10 रूपये रखे हुए थे—उसकी टिप के रूप में। लड़के ने साधारण आइसक्रीम इसलिए चुनी थी ताकि वह वेट्रेस को उसकी मेहनत की कदर करते हुए टिप दे सके।
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची दया और उदारता सिर्फ दूसरों को कुछ देने से नहीं, बल्कि खुद के बारे में सोचते हुए भी दूसरों की परवाह करने में है। दयालुता का मूल्य सिक्कों से कहीं अधिक होता है, और यह वह चीज़ है जिसे किसी भी कीमत से चुकाया नहीं जा सकता ।