ग़दर 2 फिल्म रिव्यू Gadar 2 Movie Review in Hindi

Gadar 2 Movie Review in Hindi ग़दर 2 फिल्म रिव्यू 

Gadar 2 Movie Review : साल 2001 में सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म ‘गदर’ ने तहलका मचा दिया था, जिसकी गूंज आज भी कहानियों में सुनाई देती है। निर्देशक अनिल शर्मा की इस फिल्म को देखने के लिए उस समय लोग ट्रैक्टरों से सिनेमा हॉल पहुंचते थे। 23 साल बाद, अनिल शर्मा इस ‘गदर: एक प्रेम कथा’ में तारा सिंह और सकीना की कहानी को फिर से सामने ला रहे हैं।

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ग़दर 2 फिल्म समीक्षा  Gadar 2 Full Movie Review in Hindi 

सनी देओल, अमीषा पटेल की फिल्म की दूसरी किस्त 11 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। 1971 के लाहौर पर आधारित इस कहानी में तारा सिंह अकेले पाकिस्तान जाता है और अपने प्यार के लिए लड़ता है। सालों पहले ये कहानी दर्शकों को खूब पसंद आई थी। अब देखते हैं कि क्या 23 साल बाद भी तारा सिंह और सकीना की ये कहानी ‘गदर 2’ इतिहास रच पाएगी?

फिल्म की कमजोर कड़ी Gadar 2 Movie Review

जब हम किसी व्यंजन को बनाने में माहिर होते हैं तो उस व्यंजन की रेसिपी हमें जुबानी याद रहती है, लेकिन इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता कि हर बार उस व्यंजन का स्वाद पहले जैसा ही होगा। ऐसा ही कुछ हुआ है सनी देओल की मशहूर ‘गदर-2’ के साथ। उन्हीं पुराने मसालों से बनी ‘गदर-2’ दर्शकों को पहले जैसा स्वाद चखने के लिए सिनेमाघरों तक खींचती है, लेकिन दर्शकों को यह मसालेदार व्यंजन कहीं न कहीं फीका नजर आया है। ‘गदर-2’ बड़ी स्क्रीन के साथ दर्शकों को सीटों से बांधे रखने में नाकाम रहती है।

जब गदर 2001 में आई थी, तब हम 1999 के कारगिल युद्ध से उबर ही रहे थे, इसलिए दर्शकों के मन में एक अलग ही भावना और उत्साह था। चूंकि 2023 में ऐसी कोई स्थिति नहीं है, इसलिए 1971 के भारत-पाक युद्ध के संदर्भ में सेट ‘गदर 2’ पहले भाग की लोकप्रियता को भुनाने और निर्देशक के बेटे को लॉन्च करने का एक हताश प्रयास लगता है।

क्या कहती है कहानी Gadar 2 Movie story

तारा सिंह और सकीना अब अपने बेटे जीता के साथ पठानकोट में रहते हैं। जीते के सिर पर फिल्मों का भूत सवार है और तारा सिंह चाहते हैं कि उनका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने, न कि उनकी तरह ट्रक ड्राइवर। दूसरी ओर, पाकिस्तान का मेजर हामिद तारा सिंह के लिए अपने दिल में जहर लेकर बैठा है और किसी भी हालत में तारा सिंह को खत्म करना चाहता है।

तारा सिंह की जिंदगी में ट्विस्ट तब आता है जब एक बार फिर उनका बेटा पाकिस्तान में फंस जाता है। तारा सिंह उसे बचाने के लिए फिर से अपने धाकड़ अंदाज में पाकिस्तान की ओर बढ़ता है। अनिल शर्मा ने पहले ही एक अलग मोड़ दिखाकर मूल कथानक की गंभीरता को खत्म कर दिया है। इंटरवल के बाद फिल्म काफी मजेदार बन पड़ी है।

फिल्म में पाकिस्तान का कट्टरपंथी रवैया, उसकी सेना का चित्रण, सेना के मुख्य अधिकारी का चित्रण, इसके अलावा भारतीय सेना का चित्रण, युद्ध के दृश्य, इन सभी चीजों को बहुत गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। भले ही यह एक मसाला फिल्म है, लेकिन कहानी और पटकथा के मामले में यह दूसरा भाग पहले भाग के आसपास भी नहीं घूमता।

क्या कुछ ज्यादा हो गया Gadar 2 

सिनेमैटोग्राफी, वीएफएक्स, डायलॉग बहुत अच्छे नहीं बने हैं। एक्टिंग के मामले में भी सनी देओल को छोड़कर किसी और का काम यादगार नहीं है। फिल्म के डायरेक्टर अनिल शर्मा की अपने बेटे उत्कर्ष शर्मा को इंडस्ट्री में दोबारा लॉन्च करने की कोशिश बुरी तरह नाकाम रही है।

अमीषा पटेल की खूबसूरती दिखाने की गुस्ताखी हजम नहीं होती और इस फिल्म में उनके पास शिवाय रोने के अलावा कुछ नहीं है। यहां तक कि पाकिस्तानी सेना में एक अधिकारी की भूमिका निभाने वाले मनीष वाधवा का दांत निकालना और लगातार भारत के नाम पर पत्थर फेंकना एक सीमा के बाद असहनीय प्रतीत होने लगता है। उत्कर्ष शर्मा और सिमरत कौर की प्रेम कहानी थोड़ी दिलचस्प लगती है।

इंटरवल के बाद सनी देओल के कुछ दमदार डायलॉग्स और कुछ जबरदस्त एक्शन सीन्स के अलावा फिल्म में कुछ खास नहीं है। इस उम्र में भी सनी देओल को ये एक्शन करते देखना बहुत संतुष्टिदायक है। ‘गदर 2’ में वही पुराना मसाला, कुछ एक्शन सीन और कुछ रीक्रिएटेड और आसानी से भूल जाने वाले गानों के अलावा कुछ भी नया नहीं है। जो लोग इस फिल्म को सिर्फ पुरानी यादों के लिए बड़े पर्दे पर देखना चाहते हैं तो वे इसे एक बार जरूर देख सकते हैं।

क्या सही नहीं लगा Gadar 2 Movie

फिल्म की कमजोरी इसकी लंबाई साबित हो सकती है जो खिंचती जाती है। गाने बहुत ज्यादा हैं और उनकी लंबाई भी काफी है। बीच-बीच में गाने आते हैं जो कहानी की गति बिगाड़ देते हैं। यह भारीपन इंटरवल के बाद अधिक महसूस होता है। दूसरे हाफ में पीछा करने के कई दृश्य हैं, जो एक समय के बाद उबाऊ होने लगते हैं। और हां, अगर 23 साल बाद आप फिल्म में होने वाली चीजों के पीछे बहुत ज्यादा तर्क की उम्मीद कर रहे हैं तो यह आपकी गलती है, निर्माताओं की नहीं।

एक बात और, हो सकता है कि इस फिल्म को देखने के बाद आपका बंदूकों, गोला-बारूद और बम आदि की ताकत पर से भरोसा शायद उठ जाए। ऐसा लगता है कि ये सब सिर्फ फिल्म में धूल उड़ाने और आग बुझाने के लिए है। क्योंकि मरने के बाद उनका कोई साथ नहीं बचता।

विक्रम रोणा

गंगूबाई काठियावाड़ी

फ़ोन भूत

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