विक्रांत रोणा रिव्यू vikrant rona reviews

विक्रांत रोणा रिव्यू vikrant rona reviews

vikrant rona reviews : अज्ञात के रहस्य को उजागर करती फिल्म में कहाँ रह गयी कमी

विक्रांत रोणा रिव्यू vikrant rona reviews

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विक्रांत रोणा रिव्यू इन हिंदी vikrant rona reviews in hindi: इन दिनों साउथ फिल्मों को लेकर इतना हंगामा मचा हुआ है कि कौन सी फिल्म क्या कमाल करेगी। यह नहीं कह सकते कि कन्नड़ फिल्म विक्रांत रोना को हिंदी में डब किया गया है। फिल्म में किच्चा सुदीप मुख्य भूमिका में हैं और जैकलीन फर्नांडिस अतिथि भूमिका में हैं। जी हां, वह गेस्ट रोल में ही हैं।

विक्रांत रोणा फिल्म की कहानी vikrant rona story

इस फिल्म की कहानी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया जा सकता क्योंकि ये एक रहस्य है। मुख्य कथानक यह है कि एक गाँव में कुछ अजीब हो रहा है और इंस्पेक्टर विक्रांत रोना उसे सुलझाने के लिए वहाँ आते हैं। इसके बाद जो होगा उसके लिए आपको टिकट खरीदना होगा।

कह सकते हैं 50 साल पहले के चुलबुल पांडे vikrant rona reviews

फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ उस दौर की काल्पनिक कहानी है जब देश में ज्यादा प्रगति नहीं हुई थी। जंगल की बस्तियों के आसपास आदिवासियों का डेरा था। मोबाइल और टेलीविजन से दूर बच्चे समूहों में बैठकर एक-दूसरे को काल्पनिक कहानियाँ सुनाते थे और इंद्रजाल कॉमिक्स की ‘फैंटम’ श्रृंखला की किताबें उत्साह से पढ़ते थे।

फिल्म ‘विक्रांत रोना’ का नाम भी पहले ‘फैंटम’ था। फैंटम के बारे में किंवदंती है कि यह चरित्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है। यदि कोई मर जाता है तो उसकी अगली पीढ़ी उसका स्थान ले लेती है। इस लिहाज से हिंदी सिनेमा के चुलबुल पांडे भी विक्रांत रोना के वंशज ही लगते हैं। कहानी एक पुलिस इंस्पेक्टर के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपनी लापता पत्नी और बच्चे की तलाश में जंगलों के बीच एक गहरे गांव में आता है और वहां होने वाले बच्चों के अपहरण और हत्याओं के रहस्य को सुलझाता है। काल्पनिक दुनिया में रची गई इस मर्डर मिस्ट्री में और भी कई किरदार हैं और हत्याओं का शक एक से दूसरे तक घूमता रहता है।

अच्छी कहानी, अच्छी स्क्रिप्ट फिर भी कुछ कमी

अनूप भंडारी की फिल्म ‘विक्रांत रोना’ मूल रूप से कन्नड़ में बनाई गई थी और कई अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी में भी रिलीज हुई थी। फिल्म 3डी में है और कहानी के बैकग्राउंड और भौगोलिक स्थिति के हिसाब से इसे 3डी में बनाना सही लगता है। फिल्म की कहानी भी अनूप ने अच्छी लिखी है, लेकिन अगर उन्होंने इसे बढ़ाने में कुछ और लोगों की मदद ली होती तो नतीजा बेहतर होता. फिल्म की पटकथा शुरुआत में पकड़ बनाए रखती है लेकिन एक बार जब नायक का लक्ष्य निर्धारित हो जाता है तो फिल्म भटकने लगती है। फंतासी फिल्म में मर्डर मिस्ट्री के साथ हॉरर के तत्व भी डाले गए हैं और यह दर्शकों को कई बार डराती भी है.

ओवरएक्टिंग ने गड़बड़ कर दिया

फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ अपनी पटकथा से तो मात खाती ही है, फिल्म के हीरो सुदीप की एक्टिंग भी इसमें ज्यादा मदद नहीं करती। पूरी फिल्म में वह चुलबुल पांडे की तरह बात करते हैं। विक्रांत रोना के किरदार की कमजोरियां हैं बड़ों के सामने सिगार पीना, अभद्र व्यवहार करना और एक स्थानीय शराब की दुकान पर एक नर्तकी के साथ नृत्य करके उसकी पूरी आभा को नष्ट करना। फिल्म का आधार जातीय संघर्ष है। छुआछूत को लेकर ऊंची जातियों और दलितों के बीच इस संघर्ष के नतीजे में ही फिल्म का असली राज छिपा है।

क्या यह फिल्म देखना चाहिये ?

फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ तकनीकी रूप से एक बेहतर फिल्म है। फिल्म का आर्ट डायरेक्शन शिव कुमार ने किया है और वह और उनकी टीम फिल्म का बेहतरीन माहौल बनाने में 100 फीसदी सफल रहे हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी विलियम डेविड ने की है और वह भी कहानी में रस पैदा करने में मददगार साबित होती है। कहानी, पटकथा, निर्देशन और अभिनय में कमजोर फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ का संगीत भी हिंदी दर्शकों को रास नहीं आ रहा है।

अगर यह फैंटसी फिल्म ठीक से बनाई गई होती तो यह बच्चों और पारिवारिक दर्शकों के लिए एक अद्भुत साहसिक फिल्म साबित हो सकती थी।

और अंत में

कन्नड़ फिल्म स्टार ‘बादशाह’ किच्चा सुदीप की फिल्म जिसे हिंदी में डब करके रिलीज किया गया है। इसे एक एक्शन-एडवेंचर-फंतासी फिल्म कहा जा रहा है, लेकिन कभी-कभी यह बच्चों के लिए बनी फिल्म लगती है, कहीं यह डार्क हो जाती है और कहीं यह डरावनी हो जाती है, लेकिन अंत में यह कहीं नहीं है। जिस तरह निर्देशक इस बात को लेकर कन्फ्यूज रहते हैं कि वे क्या बना रहे हैं, वही कन्फ्यूजन फिल्म की स्क्रिप्ट में भी दिखता है और दर्शक भी कन्फ्यूज हो जाते हैं।”

गंगूबाई काठियावाड़ी 

द कश्मीर फाइल्स 

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