बूढ़ा उल्लू और टिड्डा

बूढ़ा उल्लू और टिड्डा Old Owl and Grasshopper

एक बार की बात है, एक उल्लू दिन के समय सोता था। जब सूरज ढलता था और आसमान से गुलाबी रोशनी धीरे-धीरे गायब हो जाती थी, तब वह अपने पुराने खोखले पेड़ से बाहर निकलता था । उसकी “हू-हू-हू-ऊ-ऊ” की आवाज़ जंगल में गूंज उठता था, और वह कीड़े-मकोड़े, मेंढक और चूहे पकड़ने के लिए शिकार पर निकल पड़ता था।

बूढ़ा उल्लू और टिड्डा Old Owl and Grasshopper

बूढ़ा उल्लू और टिड्डा Old Owl and Grasshopper -Hindi Story-

समय बीतता गया, अब उल्लू बूढ़ा हो गया था जो उम्र के साथ-साथ बहुत चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो गया था, खासकर जब कोई उसकी दिन की नींद में खलल डालता था। एक दिन गर्मी के मौसम की दोपहर में उल्लू अपने पुराने ओक के पेड़ के भीतर आराम कर रहा था, तभी पास ही एक टिड्डा गाना गाने लगा। पर उसकी आवाज़ बहुत तीखी और कर्कश थी। उल्लू ने अपना सिर पेड़ के छेद से बाहर निकाला और टिड्डे से बोला -“यहाँ से चले जाओ, “तुम्हें कोई तमीज नहीं है? तुम्हें कम से कम मेरी उम्र का ख्याल करना चाहिए और मुझे शांति से सोने देना चाहिए!”

लेकिन टिड्डे ने बड़ी ढिठाई से जवाब दिया कि उसे भी धूप में अपनी जगह पर उतना ही हक है जितना उल्लू को अपने पुराने ओक के पेड़ में। यह कहकर वह और भी जोर से और कर्कश आवाज़ में गाने लगा।

बुद्धिमान बूढ़े उल्लू को पता था कि टिड्डे से बहस करने का कोई फायदा नहीं है। इसके अलावा उल्लू को दिन के उजाले में इतना दिखाई भी नहीं देता था की वह टिड्डे को सबक सीखा सके। इसलिए उसने गुस्से को छोड़कर उससे बहुत ही प्यार से बात किया।

उल्लू ने टिड्डे से बोलै “ठीक है, श्रीमान,” “अगर मुझे जागते रहना ही है, तो मैं आपके गाने का आनंद ले लेता हूँ। वैसे मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे पास एक अद्भुत रस है, जो मुझे मेरे एक मित्र ने भेजा था। उसने मुझे बताया था की इस रस को पीने के बाद वह बड़े अच्छे सुर में गाता था। आप भी चाहें तो ऊपर आकर इस स्वादिष्ट पेय का आनंद लेकर अपनी आवाज को और ज्यादा सुरीला बना सकते हैं;

मूर्ख टिड्डा उल्लू की मीठी बातों में आ गया। वह उल्लू के पास कूदकर उसके घोंसले में चला गया। लेकिन जैसे ही वह उल्लू के नज़दीक आया, उल्लू ने उसे साफ़ देख लिया और उस पर झपट कर उसे खा गया।

इस कहानी से सीख: चापलूसी करना सच्ची प्रशंसा का प्रमाण नहीं है। चापलूसी के बहकावे में आकर दुश्मन के प्रति सतर्कता नहीं खोनी चाहिए।

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