शब्दों की शक्ति: बोलने से पहले सोचने का महत्व
शब्द अनमोल हैं, और इनमें अद्वितीय शक्ति छुपी होती है। हम अक्सर बिना सोचे समझे बोल देते हैं, और कभी-कभी यही शब्द किसी के जीवन में गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। सही समय पर कहे गए शब्द किसी रिश्ते को मजबूत बना सकते हैं, जबकि अनजाने में बोले गए शब्द दर्द और उलझन पैदा कर सकते हैं।
कभी कभी जुबान से निकले हुए एक शब्द से बहुत कुछ परिवर्तित हो जाता है, यह समय और परिस्थिति पर निर्भर करता है। हमें कभी भी किसी को कुछ बोलने से पहले उसे तीन बार सोचना चाहिए। यूँ कह लीजिए की शब्दों को मुख रूपी गृह से बाहर लिकालने से पहले उन्हें तीन द्वार से गुजरने देना चाहिए। पहले द्वार पर, अपने आप से पूछो, ‘क्या यह सच है?’ दूसरे द्वार पर पूछो, ‘क्या यह आवश्यक है?’ तीसरे द्वार पर, पूछो, ‘क्या यह उसके लिए लाभप्रद है?’
इसलिए ज्ञानियों का यह सुझाव है कि किसी भी शब्द को मुख से बाहर निकालने से पहले उसे तीन द्वार से गुजरने दें। इस प्रक्रिया से आप अपनी बोलने की क्षमता को नियंत्रित कर सकते हैं और अपने रिश्तों को सुरक्षित रख सकते हैं।
तीन द्वार का नियम:
-
सत्य का द्वार: क्या यह सच है?
-
पहला कदम है यह सुनिश्चित करना कि जो आप बोलने जा रहे हैं वह सत्य पर आधारित है। झूठ बोलना न केवल अनैतिक है, बल्कि आपके विश्वास को भी कमजोर कर सकता है।
-
-
आवश्यकता का द्वार: क्या यह आवश्यक है?
-
हर सच्चाई को बोलने की जरूरत नहीं होती। अगर आपका शब्द किसी स्थिति को सुधारने या स्पष्ट करने में मदद नहीं कर रहा है, तो उसे बोलना अनावश्यक हो सकता है।
-
-
लाभ का द्वार: क्या यह उसके लिए लाभप्रद है?
-
यदि आपके शब्द से सामने वाले को लाभ नहीं मिलता या वह चोटिल हो सकता है, तो उस शब्द को बोलने से बचना चाहिए। यह द्वार सबसे कठिन होता है, क्योंकि सच्चाई और आवश्यकता होने के बावजूद लाभ न होना कई बार सोचने पर मजबूर कर देता है।
-
बोलने की विवेकपूर्ण कला:
जब तीसरे द्वार का उत्तर ‘नहीं’ हो, तो सबसे बुद्धिमानी यही है कि आप पीछे हटें। ज्ञानियों का मानना है कि शब्द और कर्मों में क्रूरता छिपी हो सकती है। इसलिए विवेकपूर्वक बोलना आवश्यक है।
यदि कोई रिश्ता विश्वास, प्रेम और समझ पर आधारित है, तो वहां कभी-कभी बेबाक सच बोलना रिश्ते को और मजबूत कर सकता है। लेकिन इस स्थिति में भी आपकी नम्रता और संवेदनशीलता आवश्यक है।
संक्षेप में, सत्य बोलना हमेशा जरूरी है, लेकिन हर सत्य को बोलना जरूरी नहीं।
🌸 निष्कर्ष (Conclusion):
शब्दों की शक्ति और विवेक का संतुलन जीवन की कुंजी है।
- अपने शब्दों को बोलने से पहले तीन द्वार (सत्य, आवश्यकता, लाभ) से गुजरने दें।
- विवेक से बोलें, ताकि आपके शब्द रिश्तों को न तोड़ें और न ही किसी को चोट पहुँचाएँ।
- अनावश्यक या हानिकारक शब्दों से बचें।
- इस नियम को अपनाकर आप अपने जीवन में शांति, प्रेम और सम्मान बना सकते हैं।
याद रखें: शब्द सिर्फ मुख से नहीं, बल्कि हृदय से निकलते हैं। सही समय और सही तरीका अपनाएँ, और शब्दों को उनकी असली शक्ति दें।


thank you for sharing with us
hellodear.in
teatv.ltd