Saturday, December 6, 2025

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तुम मेरे गुलाम के गुलाम हो – प्रेरणादायक कहानी

तुम मेरे गुलाम के गुलाम हो- संत ने कहा 

एलेक्जेंडर को भारत में सिकंदर के नाम से भी जाना जाता है। सिकंदर के संबंध में एक प्रसिद्ध प्रसंग है, जिसमें वह एक साधु से हार गया था। आइये आगे जानते हैं उसके हारने की कहानी।

सिकंदर जब भारत आया तो कई साम्राज्य जीतने के बाद भी वह संतुष्ट नहीं था। वह एक विद्वान संत की तलाश में था। वह चाहता था कि वह भारत के किसी विद्वान संत को अपने साथ ले जाए। कुछ लोगों के कहने पर वह अपनी सेना के साथ एक नागा साधु के पास पहुंचा।

सिकंदर ने देखा कि वह संत बिना कपड़ों के पेड़ के नीचे ध्यान में मग्न थे। सिकंदर और उसकी सेना तब तक इंतजार करती रही जब तक संत ध्यान से बाहर नहीं आ गए। संत का ध्यान भंग होते ही सारी सेना एक स्वर में चिल्लाने लगी- ‘सिकंदर महान! सिकंदर महान!’ संत उस पर मुस्कुराए।

सिकंदर ने संत से कहा कि वह उन्हें अपने साथ लेकर जाना चाहता है। संत ने उत्तर दिया कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है जो तुम मुझे दे सकते हो। जो मेरे है वह तुम्हारे पास नहीं है। मैं जहां हूं खुश हूं। मैं यहाँ रहना चाहता हूँ मैं तुम्हारे साथ नहीं आ रहा हूँ।

यह सुनकर सिकंदर की सेना  क्रुद्ध हो गई, क्योंकि उनके सम्राट की इच्छा को एक  संत ने ठुकरा दिया था। सिकंदर ने अपनी सेना को शांत किया। और उसने संत से कहा कि मुझे जवाब में ‘ना’ सुनने की आदत नहीं है। आप को हमारे साथ आना ही होगा।

इस पर संत ने उत्तर दिया कि तुम मेरे जीवन के निर्णय नहीं ले सकते। मैंने यह तय किया है कि अगर मैं रहूंगा तो यहीं रहूंगा। तुम यहाँ से जा सकते हो।

यह सुनकर सिकंदर आग बबूला हो गया। और उसने अपनी तलवार निकाली और संत के गले पर रख दिया, और कहा कि अब बताओ, तुम्हें जीवन चाहिए या मृत्यु?

संत अपनी बात पर अड़े थे। संत ने कहा कि अगर तुम मुझे मार दोगे तो फिर कभी अपने आप को सिकंदर महान मत कहना , क्योंकि तुममें महान जैसी कोई चीज नहीं है। तुम तो मेरे गुलाम के गुलाम हो।

यह सुनकर सिकंदर चौंक गया। वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसने पूरी दुनिया को जीत लिया है और एक ऋषि उसे अपने दास का दास कह रहा है। सिकंदर ने पूछा कि तुम क्या कहना चाहते हो?’

संत ने उत्तर दिया कि जब तक मैं नहीं चाहता, मुझे क्रोध नहीं आता। क्रोध मेरा दास है। वहीं जब क्रोध को लगता है तो वह तुम पर हावी हो जाता है। तुम अपने क्रोध के दास हो। भले ही तुमने सारे जगत को जीत लिया हो, तो भी तुम मेरे दास के दास ही बने रहोगे।

सिकंदर यह सुनकर दंग रह गया। उन्होंने श्रद्धा के साथ संत के सामने अपना सिर झुकाया। उसे अच्छी तरह समझ में आ गया था की आखिर उस संत ने उससे क्या कहा। सिकंदर अपनी सेना के साथ लौट आया।

कहानी से सीख (Moral of the Story) : 

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जो व्यक्ति अपने क्रोध पर काबू पाता है, वह असल में जीवन में सच्चा विजेता होता है। क्रोध हमारे जीवन में न केवल असंतोष लाता है, बल्कि रिश्तों को भी तोड़ता है। हमें अपने क्रोध को नियंत्रित करना सीखना चाहिए, क्योंकि अंततः वही हमें मानसिक शांति और सुख का अनुभव कराता है। संत के उपदेश ने सिकंदर को यह अहसास दिलाया कि जो हमारे क्रोध का दास होता है, वह सच्चा बलशाली नहीं, बल्कि कमजोर होता है।

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