संगत का असर Sangat ka asar
संगत का असर Sangat ka asar : एक गाँव में एक किसान रहता था। एक बार उसे कहीं से बाज़ का अंडा मिला। उसने उस अंडे को मुर्गी के अंडे के साथ रख दिया। मुर्गी अन्य अंडों के साथ उस अंडे को भी सेने लगी।
संगत का असर Sangat ka asar
कुछ ही दिनों में मुर्गी के अंडे से चूजे और बाज़ के अंडे से बाज़ निकल आये। बाज़ का बच्चा मुर्गियों के साथ बड़ा होने लगा। वह मुर्गियों के साथ इधर-उधर खाता-पीता, खेलता कूदता हुआ बड़ा होने लगा।
मुर्गियों के साथ रहते हुए उसे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वह मुर्गी नहीं बल्कि एक बाज़ है। वह अपने आप को मुर्गी समझता था और उन्हीं की तरह सब कुछ करता था।
जब उसके उड़ने की बारी आई तो वह भी दूसरे चूजों को देखकर थोड़ी ऊंचाई तक उड़ गया और फिर वापस जमीन पर आ गया। वह भी ऊँचा उड़ना चाहता था, लेकिन जब वह सबको थोड़ा ही ऊँचा उड़ता देखता तो वह भी उतना ही ऊँचा उड़ता। उसने कोशिश की कि वह ज़्यादा ऊँचा न उड़े।
एक दिन उसने आकाश में एक बाज़ को उड़ते हुए देखा। उसने पहली बार किसी पक्षी को इतनी ऊंचाई पर उड़ते देखा था। उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उसने चूजों से पूछा, “भाई, यह कौन है, जो इतनी ऊंचाई पर उड़ रहा है?”
चूज़ों ने कहा, “वह बाज़ है, पक्षियों का राजा। वह आकाश में सबसे ऊंचे स्थान पर उड़ जाता है। कोई अन्य पक्षी इसकी बराबरी नहीं कर सकता।
“क्या होगा अगर मैं उसकी तरह उड़ना चाहूं?” छोटे बाज़ ने पूछा ?
“कैसी बात करते हो तुम? यह मत भूलो कि तुम एक चूजे हो। चाहे तुम कितनी भी कोशिश कर लो, तुम बाज की तरह उड़ नहीं पाओगे। इसलिए व्यर्थ में ऊंची उड़ान भरने के बारे में मत सोचो। थोड़ा सा ही उड़कर खुश रहो क्योंकि तुम की तरह नहीं उड़ सकते हो।” मुर्गियाँ बोलीं।
बाज़ ने इसे स्वीकार कर लिया और कभी भी ऊँचा उड़ने की कोशिश नहीं की। बाज़ होते हुए भी वह सारी जिंदगी मुर्गे की तरह जिया।
सीख-
सोच और दृष्टिकोण का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम सभी क्षमता और संभावनाओं से भरे हुए हैं। हम जिस भी स्थिति में हों, हमें अपनी क्षमता का एहसास करने और अपनी सोच और दृष्टिकोण को व्यापक बनाने की जरूरत है।
यदि हम अपने आप को मुर्गी समझते हैं तो हम मुर्गी बन जायेंगे और यदि हम अपने आप को बाज़ समझते हैं तो हम बाज़ बन जायेंगे। अपने आप को कम मत आंको, अपनी क्षमता को सीमित मत करो, बाज़ बनो और जीवन में ऊंची उड़ान भरो।
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