चूहा और मेंढक की दोस्ती – बच्चों की नैतिक कहानी (Chuha Aur Mendak Ki Dosti Kahani in Hindi)
एक समय की बात है, एक जलाशय में एक मेंढक रहता था। उसका कोई दोस्त नहीं था, इसलिए वह बहुत दुखी था। वह भगवान से प्रार्थना करता था कि उसका कोई अच्छा दोस्त बने, ताकि उसकी निराशा और अकेलापन दूर हो जाए।
उस जलाशय के पास एक पेड़ के नीचे बिल में एक चूहा रहता था। वह प्रसन्न स्वभाव का था। एक दिन जब उसने मेंढक को देखा, तो वह उसके पास गया और बोला, “मित्र, कैसे हो?”
मेंढक ने दुखी स्वर में कहा, “मैं अकेला हूँ। मेरा कोई मित्र नहीं है। इसलिए मैं बहुत दुखी हूँ।”
“अब और परेशान मत हो। मैं अब आपका दोस्त बनूंगा, जब भी आपको मेरे साथ समय बिताने की आवश्यकता हो, तो आप मेरे बिल में सकते हैं।” चूहे ने कहा।
मेंढक चूहे की बात सुनकर बहुत रोमांचित हो गया। उस दिन के बाद दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए। दोनों जलाशय के किनारे बैठकर कई घंटों तक बातचीत करते थे। अब मेंढक बहुत खुश हो गया था।
एक दिन मेंढक के मन में एक खयाल आया, उसने चूहे से कहा, “क्यों न एक बड़ी सी रस्सी के दोनों सिरों को हमारे पैरों से बांध दिया जाए। जब भी हमें एक दूसरे की जरुरत महसूस होगी, मैं रस्सी खींचूंगा और तुम्हें पता चल जाएगा।”
चूहा मेढक की बात से सहमत हो गया। उन्होंने एक रस्सी खोजी और उसके सिरों को अपने पैरों से बांध दिया।
तभी आकाश में उड़ते हुए बाज की नजर चूहे पर पड़ी। वह चूहे को अपना शिकार बनाने के लिए उस पर झपट पड़ा। यह देखकर मेंढक आशंकित हो गया और अपनी जान बचाने के लिए जलाशय में कूद गया। लेकिन आनन-फानन में वह भूल गया कि रस्सी का दूसरा सिरा अभी भी उसके दोस्त चूहे के पैर में बंधा हुआ है।
रस्सी की वजह से चूहा भी मेढक के साथ पानी में चला गया। जिससे डूबने की वजह से उसकी मौत हो गई।
कुछ दिनों के बाद, चूहे का शव जलाशय के ऊपर तैरने लगा। बाज़ फिर से आसमान में उड़ता हुआ निकला। उसने पानी में तैरते हुए चूहे को देखा। उसने फिर झपट्टा मारा और पानी के ऊपर तैर रहे चूहे के शव को अपने पंजों में दबोच लिया। और आसमान की तरफ उड़ चला। मेंढ़क भी साथ चला गया क्योंकि रस्सी का एक सिरा अभी भी उसके पैर से बंधा हुआ था।
🌿कहानी से शिक्षा (Moral of the Story):
- हमें सोच-समझकर ही दोस्ती करनी चाहिए।
- किसी की मूर्खता का परिणाम कभी-कभी दूसरों को भी भुगतना पड़ता है।
- सच्ची दोस्ती समझदारी और समान विचारों पर आधारित होती है।
