आज हुई है रैना फिर से फैला अधियारा
डूब गया उम्मीद का सूरज लेकर चैन हमारा
मन के पंछी भटक भटक कर अपने घर को आये
चली पवन पुरवाई फिर से यादों की धूल उड़ाए
पड़ने लगी है ओस की बूंदे भीगे तन मन सारा
डूब गया उम्मीद का सूरज लेकर चैन हमारा
लगता है डर अधियारे से क्यों होती है रैना
नीद आती तो चैन आता पर सोते नहीं मेरे नैना
आये न निंदिया जागी सी रतिया खोया है सपना सारा
डूब गया उम्मीद का सूरज लेकर चैन हमारा
आज हुई है रैना फिर से फैला अधियारा
डूब गया उम्मीद का सूरज लेकर चैन हमारा
…संतोष