Shikshaprad Kahani
एक गांव में एक ग्वाला रहता था। वह बहुत लालची था। उसके पास कई गायें थीं। वह उनका दूध निकाल कर बाजार में बेंचता था। जो पैसे मिलते उन्हें वह जमा कर देता था। एक भी पैसा अपने ऊपर या गायों के चारे-पानी के लिए खर्च नहीं करता था। क्योंकि वह बहुत जल्द अमीर बनना चाहता था।
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गायों को घर पर बांधकर चारा न खिलाना पड़े, इसके खर्च से बचने के लिए वह दिन भर गायों को जंगल में चराता रहता था। और दिन भर उनके साथ घूमता रहता और शाम को उन्हें लाकर खूंटे से बांध देता था।
एक बार की बात है गायों ने दूध देना बंद कर दिया था। ग्वाला बहुत चिड़चिड़ा हो गया था क्योंकि दूध से होने वाली कमाई बंद हो गयी थी। फिर भी यह उम्मीद तो थी ही कि चलो अभी नहीं तो कुछ समय बाद ये गायें फिर से दूध तो देंगी ही। वह हमेशा की तरह उन्हें चराने के लिए जंगल की तरफ ले गया।
गायों के साथ भटकते भटकते वह बहुत दूर निकल गया था। उसे पता भी नहीं चला की वह कितनी दूर चला गया है अब उसे रास्ता भी भूल गया था। अचानक बादल गरजने लगा और जोर जोर से बारिस होने लगी। वह अपनी गायों को हाँककर किसी सुरक्षित स्थान की खोज करने लगा।
उसे एक टीला दिखाई पड़ा। टीले के पास गुफा नुमा खाली जगह थी। वह गायों हाँककर टीले के पास उस खाली पड़ी जगह तक ले गया। वही गायों के साथ बारिस ख़त्म होने का इंतजार करने लगा। तभी उसे गुफा की दूसरी तरफ से बछड़ों के बोलने की आवाज सुनाई पड़ी। उस वीराने में बछड़ों की आवाज सुनकर वह आश्चर्य चकित हो गया। उसके मन में लालच जागने लगा कि अगर ये बछड़े मिल जाये तो इससे मेरा काम बन जायेगा। मैं इन्हें बेचकर और भी पैसे जमा कर सकता हूँ।
यह सोचकर वह गायों को वही रोककर बछड़ो को पकड़ने के विचार से भीगते हुए उन्हें ढूढ़ने निकल पड़ा। गुफा के पीछे की तरफ जाकर उसने देखा कि बछड़ो के साथ गायें भी थीं। ग्वाला बहुत आश्चर्य चकित और प्रशन्न हुआ। चारों तरफ घूमकर देखा तो उसे वहां कोई भी इंसान दिखाई नहीं पड़ा। वह समझ रहा था कि ये गायें और बछड़े रास्ता भूलकर बारिस की वजह से यहाँ आकर खड़े हो गए हैं।
प्रसन्न होते हुए वह मन ही मन सोच रहा था की यदि ये सारी गायें और बछड़े वह अपने साथ ले गया तो वह मालामाल जायेगा। बछड़े अभी छोटे थे और गायों के थन बड़े बड़े दिखाई दे रहे थे। उसे यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी की गायें दूध भी देती हैं। दूध बेचकर बड़े सारे पैसे मिलेंगे, ये सोच सोच कर मन में फूला नहीं समा रहा था।
इन ख़यालों ने उसे इतना बेसुध कर दिया था की उसे अपनी गायों की कोई फिकर ही नहीं थी। बिना कुछ सोचे वह जल्दी जल्दी भीगते हुए गया और कहीं से ढेर सारी घास लेकर आया और उन गायों और बछड़ों को खिलाने लगा। उसे अब बारिस बंद होने का इंतजार था कि कितनी जल्दी बारिस बंद हो और वह उन गायों और बछड़ों को लेकर अपने घर जाये।
इसी बीच उसे अपनी गायों का खयाल आया कि वे कहीं इधर उधर न चली जाये। दूसरे ही क्षण उसने सोचा कि वे गायें अगर कहीं चली भी गयीं तो क्या हुआ वे कौन सा दूध देती हैं। अब मुझे इतनी सारी दूध देने वाली गायें और साथ में बछड़े भी मिल रहें है। अगर मैं उन्हें देखने जाऊं तो क्या पता अगर ये कहीं चली गयीं तो ? इन्हीं खयालो और उसके लालच ने उसे वहीँ पर रोके रखा।
बारिस बंद हो गयी। अब वह ग्वाला उन गायों और बछड़ों को हाँक कर अपने साथ ले चलने की कोशिश करने लगा। परन्तु वे गायें और बछड़े एक साथ दूसरी तरफ भागने लगे। ग्वाले के लिए उन्हें रोकना संभव नहीं था। टीले से काफी दूर जंगल के दूसरी तरफ उन गायों और बछड़ों का गांव था। और वे गायें अक्सर वहाँ चरने आती थीं। उन गायों और बछड़ों को वह ग्वाला अपने साथ ले चलने में असफल रहा, वे सारी भागकर वहाँ से चली गयी।
ग्वाला हाथ मलता हुआ भागकर अपनी गायों को देखने गुफा के पास पहुंचा। वहां पहुंचकर उसके होश उड़ गए। उसकी सारी गायें वहां से चलीं गयीं थीं। वह बहुत क्रोधित हुआ और अपनी गायों को ढूढ़ने लगा।
बहुत कोशिश के बाद भी उसकी गायें उसे नहीं मिलीं। जंगल बड़ा था, गायों को ढूढ़ते ढूढ़ते शाम हो चली थी। वह बहुत हताश और निराश हो गया था। किसी तरह भटकते हुए उसे घर जाने का रास्ता मिला और बिना गायें लिए वह घर की तरफ चल पड़ा। अभी भी मन में एक उम्मीद थी कि क्या पता गायें घर आ गयीं हो। परन्तु घर पहुंच कर देखा तो गायें वहाँ भी नहीं थी। वह बहुत दुःखी और उदास हो गया था। उसके लालच ने उससे वह सब भी छीन लिया था, जो उसके पास था।
शिक्षा – लालच बुरी बला है। कभी कभी पूरी के चक्कर में आधी भी गवाना पड़ जाता है। इसलिए लालच नहीं करनी चाहिए।
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