Sunday, October 26, 2025

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माँ तो माँ होती है

माँ तो माँ होती है gyanhans

माँ तो माँ होती है

अकेली माँ ने अपने एकलौते बेटे को बड़े कष्ट से पाला। दुनिया का हर दुख सुख सहकर उसने अपने बेटे को कभी कोई कष्ट न होने दिया।

बेटा बड़ा हो गया था। एक दिन बेटे का विवाह हो गया। बहु आ गयी।  माँ की आँखों में खुशी के आंसू थे। क्योंकि हर माँ के लिए औलाद ख़ुशी ही उसके लिए दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है।

बहु के आने के कुछ दिन बाद ही बेटे ने माँ से कहा – माँ अब तुम बृद्धाआश्रम चली जाओ, वहां तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा। वहां तुम्हारी उम्र के लोग होंगे। वहां तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।

माँ समझ गयी थी की बेटा ऐसा किस लिए कह रहा है। माँ अपने बेटे और बहु के साथ बहुत खुश थी। उसे बृद्धाआश्रम नहीं जाना था, परन्तु उसने बेटे को मना नहीं किया और बोली – बेटा अगर तुम्हे यही सही लगता है तो मैं चली जाउंगी।

माँ बृद्धा आश्रम चली गयी। वहां उसकी उम्र के बहुत से लोग थे। सबकी अपनी अलग अलग कहानियां थीं। हर कोई एक दूसरे से अपने मन की बातें  कहकर अपने दुःख को कम कर लेता था।

काफी वक्त गुजर गया। बूढी माँ बीमार पड़ गयी थी। उसका बेटा उससे मिलने आया और माँ के पास बैठकर हाल पूंछने लगा।

माँ ने कहा बेटा अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मेरे जाने के बाद इस आश्रम में यहाँ एक पंखा लगवा देना।  यहाँ पानी भी सही नहीं आता इसलिए यहाँ एक पानी का नल भी लगवा देना। अगर तुम्हारा बजट और अच्छा हो तो एक फ्रिज भी रखवा देना। क्योंकि गर्मी में पानी बहुत गर्म हो जाता है, मुझसे पिया नहीं जाता था।

माँ तो माँ होती है

बेटे ने कहा -माँ अब तो तुम्हारे दिन पूरे हो गए। अब इस सब की क्या जरुरत है।

माँ ने कहा बेटा – मैं ये सब इसलिए कह रहीं हूँ क्योंकि जब तुम मेरी तरह बूढ़े हो जाओगे, और तुम्हारे बच्चे तुम्हें भी इस आश्रम में लाकर छोड़ देंगे, तब मैं चाहती हूँ कि तुम्हें कोई कष्ट न हो। मैंने तो जैसे तैसे झेल लिया, पर मैं जानती हूँ कि तू नहीं झेल पायेगा, बेटा। क्योंकि बचपन से ही तुझे ये सब झेलने की आदत नहीं है।

इतना कहकर माँ ने सदा सदा के लिए अपनी आँखें बंद कर ली।

बेटा अपने नीर भरे नैनों से माँ को निहार रहा था। उसे इस बात का आभास हो चुका था कि जीवन में उसने सबसे बड़ी क्या गलती की थी।

यह तो सर्वथा सत्य है की अगर जीवन रहा तो हर इंसान, एक न एक दिन बूढ़ अवश्य होता है। इसलिए घर के बुजुर्गों और माता पिता को कभी भी बोझ न समझें।

बचपन में जितनी जरुरत आपको उनकी होती थी, बुढ़ापे में उतनी ही जरूरत उन्हें आपकी होती है।याद रखिये वे आपके लिए किसी प्रकार की बाधा नहीं हैं, बल्कि वह दीवार हैं जो हर बयार को आप तक पहुंचने से पहले स्वयं झेल लेते हैं।

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