या देवी सर्वभूतेषु: देवी के 18 अद्भुत रूपों की महिमा
“या देवी सर्वभूतेषु” एक प्रसिद्ध श्लोक है, जो देवी के विभिन्न रूपों को श्रद्धा और भक्ति से प्रस्तुत करता है। यह श्लोक हमें बताता है कि देवी हर प्राणी के भीतर एक अलग रूप में विराजमान हैं। यहाँ हम इस श्लोक के 18 अद्भुत रूपों के बारे में जानेंगे:
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
1. शक्ति रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
2. मातृ रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
3. चेतना रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभि-धीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
4. कान्ति रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सभी प्राणियों में तेज, दिव्यज्योति, उर्जा रूप में विद्यमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
5. जाति रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जाति – जन्म, सभी वस्तुओ का मूल कारण जो देवी सभी प्राणियों का मूल कारण है, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
6. दया रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु दया-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में दया के रूप में विद्यमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
7. शांति रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु शांति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी समस्त प्राणियों में शान्ति के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
8. क्षान्ति रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में सहनशीलता, क्षमा के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
9. बुद्धि रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सभी प्राणियों में बुद्धि के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है। आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
10. लक्ष्मी रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी, वैभव के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है।
11. विद्या रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में विद्या के रूप में विराजमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
12. श्रद्धा रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी समस्त प्राणियों में श्रद्धा, आदर, सम्मान के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
13. भक्ति रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में भक्ति, निष्ठा, अनुराग के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारम्बार नमस्कार है। आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
14. तृष्णा रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सभी प्राणियों में चाहत के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
15. क्षुधा रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी समस्त प्राणियों में भूख के रूप में विराजमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
16. तुष्टि रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सब प्राणियों में सन्तुष्टि के रूप में विराजमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
17. निद्रा रूपेण स्थित देवी
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी सभी प्राणियों में आराम, नींद के रूप में विराजमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
18. सर्व मंगल मागल्ये
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो। शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है।
Conclusion:
यह श्लोक देवी के रूपों को एकत्र करके उनके अस्तित्व और शक्ति को हमारे जीवन में हर रूप में दर्शाता है। “या देवी सर्वभूतेषु” के प्रत्येक रूप के माध्यम से देवी की महिमा और उनके विभिन्न रूपों का सम्मान करना हम सभी के लिए एक विशेष श्रद्धांजलि है। इस स्तोत्र को पढ़ते समय हर रूप के साथ श्रद्धा और भक्ति से जुड़ना हमारी मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति का मार्ग है।

