भगत सिंह पर निबंध – Bhagat Singh Essay in Hindi
भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी और शहीद थे। उन्होंने अपने जीवन की सभी सुविधाएँ छोड़कर देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया। उनका साहस, विचार और बलिदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। यहाँ पर हम भगत सिंह पर निबंध – Bhagat Singh Essay in Hindi पढ़ेंगे जिसमें हम उनके बारे में विस्तार से जानेंगे।
प्रस्तावना
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन कुछ नाम हमेशा अमर रहते हैं। ऐसे ही एक नाम है भगत सिंह। वह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा और देशभक्ति का प्रतीक थे। उनका साहस, उनका उत्साह और उनके बलिदान आज भी हर भारतीय के दिल में झकझोरते हैं। जब मैं भगत सिंह के बारे में सोचता हूँ, तो उनकी कम उम्र में किए गए साहसिक कार्यों और देशभक्ति की गहरी भावना देखकर मेरी आँखों में आंसू आ जाते हैं।
जन्म और परिवार
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गाँव में हुआ। उनके पिता किशन सिंह और माता विद्यावती एक ऐसे परिवार से थे, जहाँ देशभक्ति और स्वराज का भाव पहले से ही गहरा था। उनके चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। बचपन से ही भगत सिंह के मन में देशभक्ति की भावना थी। जब उनके पिता और चाचा जेल गए, तब भी उन्होंने कभी डर या निराशा नहीं मानी, बल्कि और अधिक दृढ़ होकर स्वतंत्रता की राह पर चल पड़े।
शिक्षा और प्रारंभिक प्रभाव
भगत सिंह ने लाहौर के डीएवी हाई स्कूल से पढ़ाई की। 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। यह भयानक घटना देखकर उनकी आँखों में आंसू तो आए, लेकिन उन्होंने क्रोध को देश के लिए साहस में बदल दिया। वे केवल पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी नहीं थे, बल्कि विचारशील और साहसी युवा थे, जिन्होंने अपनी शिक्षा और बुद्धि का उपयोग अपने देश की सेवा में किया।
क्रांतिकारी कार्य
भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की और बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़े। उनके साथी राजगुरु, सुखदेव, और बटुकेश्वर दत्त के साथ उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। 8 अप्रैल 1929 को उन्होंने दिल्ली में ब्रिटिश संसद में बम फेंक कर न केवल सरकार को चेताया, बल्कि युवाओं में देशभक्ति की आग भी भड़की। उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि युवाओं को स्वतंत्रता के लिए जागरूक करना था।
गिरफ्तारी और जेल जीवन
भगत सिंह की गिरफ्तारी ने उनके साहस और धैर्य को और भी उजागर किया। जेल में भी उन्होंने कभी अपने आत्मसम्मान और विचारों से समझौता नहीं किया। उन्होंने लिखा, “अगर मेरे बलिदान से एक भी युवा जागे और अपने देश के लिए खड़ा हो, तो मेरी मौत सार्थक होगी।” जेल में उन्होंने अपने विचार, लेख और पत्र लिखे, जो आज भी हमें प्रेरित करते हैं।
फांसी और शहादत
23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई। उनकी उम्र केवल 23 साल थी, लेकिन उनके कार्य इतने महान थे कि पूरा देश उनके बलिदान को कभी नहीं भूल सकता। उनके अंतिम क्षणों में भी उनका साहस और धैर्य हमें यह सिखाता है कि देशभक्ति का कोई माप नहीं होता, और सच्चा प्रेम केवल जीवन तक सीमित नहीं होता।
भगत सिंह की विरासत
भगत सिंह ने युवाओं को यह संदेश दिया कि देश की स्वतंत्रता के लिए यदि मन में सच्चा विश्वास और साहस है, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। उनका नारा “इंकलाब जिंदाबाद” आज भी हर दिल में गूंजता है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सोच, साहस और बलिदान के साथ किया गया कार्य हमेशा इतिहास में अमर हो जाता है।
उपसंहार (Bhagat Singh Essay in Hindi)
भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि वह भावनाओं, आदर्शों और देशभक्ति का प्रतीक थे। उनका जीवन हमें याद दिलाता है कि यदि हम अपने कर्तव्यों और देश के प्रति सच्चे रहें, तो हमारी मेहनत और बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन सकती है। भगत सिंह आज भी हमारे लिए प्रेरणा हैं, और उनकी कहानी हमें सिखाती है कि “सच्चा साहस और देशभक्ति कभी मरती नहीं।”
भगत सिंह पर 10 लाइन का सरल निबंध – 10-Line Essay on Bhagat Singh
- भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गाँव में हुआ था।
- वे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे।
- बचपन में ही उन्होंने अंग्रेज़ों के अत्याचार देखे और स्वतंत्रता के लिए मन बनाया।
- उन्होंने “नौजवान भारत सभा” और बाद में HSRA (हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) से जुड़कर देश सेवा की।
- 8 अप्रैल 1929 को उन्होंने और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश संसद में बम फेंककर अंग्रेज़ों को चेताया।
- उन्होंने अपने साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ जॉन सांडर्स की हत्या की।
- जेल में रहते हुए उन्होंने अन्याय के खिलाफ भूख हड़ताल भी की।
- 23 मार्च 1931 को मात्र 23 साल की उम्र में उन्हें फाँसी दी गई।
- उनका “इंकलाब ज़िंदाबाद” का नारा आज भी युवाओं को प्रेरित करता है।
- भगत सिंह का साहस और बलिदान हमेशा भारतीय इतिहास में याद किया जाएगा।

