गुस्से की सजा Punishment for Anger
एक छोटे से गाँव में एक साधु बाबा रहते थे। वे बहुत ही शांत, सच्चे और ज्ञानवान व्यक्ति थे। लोग उन्हें ढूंढते हुए आते और उनके पास जीवन के तमाम सवालों का जवाब पाते थे। एक दिन एक युवक, जिसका नाम अमित था, साधु बाबा के पास आया। वह बहुत गुस्से में था और जानता था कि उसे इस गुस्से से छुटकारा पाने की आवश्यकता है।
अमित ने साधु से कहा, “बाबा, मैं बहुत गुस्से में रहता हूँ। छोटी-सी बात पर मेरा गुस्सा फट पड़ता है। कई बार तो मुझे खुद ही डर लगता है कि मेरा गुस्सा कहीं मुझे नुकसान न पहुँचा दे।”
साधु बाबा मुस्कराए और बोले, “गुस्सा क्यों आता है, बेटे?”
अमित ने कहा, “गुस्सा तो उस समय आता है, जब मुझे लगता है कि कोई मेरे साथ गलत कर रहा है। या जब कोई मेरी बात नहीं समझता, तब मुझे गुस्सा आता है।”
साधु ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं और फिर एक गहरी साँस लेकर बोले, “तुम जो कह रहे हो, वो सही है। लेकिन गुस्सा कोई बाहर से तुम्हारे अंदर नहीं लाता। गुस्सा तुम्हारे अंदर की एक भावना है, जिसे तुम खुद ही पैदा करते हो।”
अमित चौंका और बोला, “लेकिन बाबा, क्या आप यह कहना चाहते हैं कि गुस्सा मेरी गलती है?”
साधु बाबा हँसते हुए बोले, “हां, बेटा। गुस्सा एक ऐसी सजा है, जो तुम खुद को देते हो, जब कोई तुम्हारी उम्मीदों के मुताबिक नहीं चलता। तुम खुद को कष्ट देते हो, लेकिन वह कष्ट उस व्यक्ति को नहीं पहुँचता, जिससे तुम गुस्सा हो। समझो, यह एक आत्म-प्रेरित सजा है।”
अमित को समझ में नहीं आया। वह थोड़ी देर सोचता हुआ बोला, “मुझे यह ठीक से समझाइए, बाबा।”
साधु बाबा ने कहा, “मान लो, तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें धोखा दिया। वह तुम्हारी बातों का उल्लंघन करता है और तुम गुस्से में आ जाते हो। अब गुस्सा आना तुम्हारा स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, लेकिन गुस्से में तुम अपनी शांति खो देते हो, अपना मानसिक संतुलन बिगाड़ लेते हो। तुम खुद को तकलीफ में डालते हो, लेकिन जो व्यक्ति तुम्हारे गुस्से का कारण बना है, वह शांत रहता है। उसने तुम्हारे गुस्से का कोई असर नहीं लिया।”
अमित ने सिर झुकाकर कहा, “तो क्या इसका मतलब है कि जब मैं गुस्से में आता हूँ, तो मैं खुद ही अपनी शांति खो देता हूँ?”
साधु बाबा ने कहा, “बिल्कुल। गुस्सा किसी अन्य व्यक्ति की गलती के लिए तुम्हें सजा नहीं देता, बल्कि यह तुम्हारी अपनी गलती है। तुम अपनी शांति और खुशी को खो देते हो। जब तुम गुस्से में हो, तो तुम खुद को ही परेशान कर रहे हो।”
अमित ने चुपचाप सिर झुका लिया। अब उसे यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई थी। उसने ठान लिया कि वह अब गुस्से को नियंत्रित करेगा और अपनी मानसिक शांति बनाए रखेगा।
उस दिन के बाद, अमित ने गुस्से पर काबू पाने की पूरी कोशिश की और धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि जब वह शांत रहता है, तो वह अधिक खुश और संतुष्ट रहता है। और इस तरह, उसने गुस्से की सजा से खुद को मुक्त कर लिया।
साधु बाबा की उपदेशों ने अमित की ज़िन्दगी बदल दी थी, और वह जान चुका था कि गुस्से को छोड़कर शांति की ओर बढ़ना ही सबसे सही रास्ता है।