Sunday, October 26, 2025

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निःस्वार्थ प्रेम की मुद्रा – भगवान को वास्तव में क्या चाहिए?

निःस्वार्थ प्रेम की मुद्रा – भगवान को वास्तव में क्या चाहिए?

एक गाँव में एक धनी व्यापारी रहता था, उसके पास दौलत शोहरत की कोई कमीं नहीं थी।

एक बार की बात है वह धनी व्यापारी एक बड़ी मुसीबत में फंस गया था। उसके व्यापार में करोड़ों का घाटा लगा था, और अब ऐसी स्थिति बन गयी थी की जीवन की मेहनत डूबने के करीब थी। जीवन नौका डगमगा रही थी, वह आदमी कभी मंदिर नहीं गया था, उसने कभी प्रार्थना भी नहीं की थी क्योंकि उसे अपने कारोबार से फुरसत ही नहीं मिलती थी।

वह दिल का बड़ा नेक इंसान था, समय के अभाव के कारण वह पूजा पाठ नहीं कर पता था लेकिन पूजा के लिए उसने पुजारी रख रखे थे, और कई मंदिर भी बनवाये थे, जहां पुजारी उसके नाम से नियमित पूजा किया करते थे।

लेकिन आज इस दुःख की घड़ी में वह धनी व्यापारी मंदिर जाने की सोचने लगा ! आज सुबह सुबह वह जल्दी मंदिर गया, ताकि परमात्मा से पहली मुलाकात उसी की हो, और पहली प्रार्थना वही कर सके ताकि कोई दूसरा पहले कुछ मांग कर परमात्मा का मन खराब न कर दे! वह एक व्यापारी था और बोहनी की आदत थी, कमबख्त यहां भी नहीं छूटी, इसलिए वह सुबह-सुबह मन्दिर पहुँचा ।

लेकिन वह यह देख कर हैरान हुआ कि गांव का एक भिखारी उससे पहले ही मन्दिर में मौजूद था। अंधेरा था, वह भी पीछे जा कर खड़ा हो गया, कि भिखारी क्या मांग रहा है? धनी आदमी मन ही मन सोच रहा था कि मेरे पास तो मुसीबतें हैं, भिखारी के पास क्या मुसीबतें हो सकती हैं? और तभी भिखारी धनी व्यापारी को देखकर सोचने लगा, कि मुसीबतें तो मेरे पास हैं भला इस धनी आदमी के पास क्या मुसीबतें होंगी ? अब क्या बिडम्बना थी कि एक भिखारी की मुसीबत दूसरे भिखारी के लिए बहुत बड़ी नही थी !

धनी व्यापारी ने सुना कि भिखारी कह रहा है –हे परमात्मा ! अगर आज उसे पांच रुपए न मिलें तो उसका जीवन नष्ट हो जाएगा। वह आत्महत्या कर लेगा। पत्नी बीमार है और दवा के लिए पांच रुपए होना बहुत ही आवश्यक हैं ! उसका जीवन संकट में है !

धनी व्यापारी ने यह सुना और वह भिखारी भगवान से कहते हुए बंद ही नहीं हो रहा था, वह लगातार कहे जा रहा था, कहे जा रहा था। यह देखकर धनी व्यापारी ने झल्लाकर अपने जेब से पांच रुपए निकाल कर उस भिखारी को दिए और कहा – ये ले पांच रुपए, और जल्दी जा यहां से। भिखारी पैसे लेकर वहाँ से चला गया।

अब धनी व्यापारी परमात्मा के सम्मुख हुआ और बोला — प्रभु, अब आप ध्यान मेरी तरफ दें, इस भिखारी की तो यही आदत है, इसलिए मैंने उसे पैसे देकर यहाँ से जाने दिया। भगवन दरअसल मुझे पांच करोड़ रुपए की जरूरत है !

भगवान मुस्करा उठे और बोले — एक छोटे भिखारी से तो तूने मुझे छुटकारा दिला दिया, लेकिन तुझसे छुटकारा पाने के लिए, मुझको तो तुमसे भी बड़ा भिखारी ढूंढना पड़ेगा ! तुम सब लोग सदैव यहां कुछ न कुछ मांगने ही आते हो, क्या कभी मेरी जरूरत का भी ख्याल आया है तुम्हें ?

धनी व्यापारी बड़ा आश्चर्यचकित हुआ और बोला – प्रभु आपको क्या चाहिए ?

भगवान बोले – प्रेम ! मैं भाव का भूखा हूँ । मुझे निस्वार्थ प्रेम व समर्पित भक्त प्रिय है ! यदि इसी भाव से मुझ तक आओगे, तो फिर तुम्हे जीवन में कुछ मांगने की आवश्यकता ही नही पड़ेगी।

सीख (Moral of the Story):

  • भगवान को भव्य मंदिर या बड़ी दानराशि नहीं चाहिए।

  • उन्हें सच्चा, निःस्वार्थ प्रेम चाहिए – बिना किसी स्वार्थ के किया गया समर्पण।

  • सच्चे भक्ति भाव से किया गया एक छोटा सा कार्य भी प्रभु के हृदय को छू जाता है।

इस कहानी को यहाँ देखें –

 

 

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