राजा और नाई की कहानी – दूसरों के दुख का एहसास करने वाली प्रेरणादायक कहानी | Moral Story in Hindi
एक राजा थे वे बड़े ही दिलेर थे। उनके दरबार में एक नाई था वह राजा का बड़ा क़रीबी था। नाई राजा के बाल काटने लिए अक्सर दरबार में आता था। वह राजा का मुखबिर भी था। वह प्रजा की सारी गुप्त सूचनाएं राजा तक पहुँचाता था। राजा उसपर बहुत बिश्वास करता था। वह जब भी दरबार में आता था राजा उससे एक प्रश्न करते ” नाई प्रजा का क्या हाल चाल है ?” नाई का हमेशा एक ही जबाब होता था “राजा राज कर रहे है और प्रजा दूध भात खा रही है ” जबाब सुनकर राजा प्रसन्न हो जाते थे। जब भी नाई से राजा सवाल करते, नाई का यही जबाब होता, और हरबार की तरह जबाब सुनकर राजा बड़े प्रसन्न होते। यह जबाब मंत्री को रास नहीं आता था।
एक बार मंत्री ने सोचा कि आखिर माजरा क्या है, प्रजा पर कभी कोई मुसीबत होती है, कोई बीमार है या कोई भूखा है उसके घर में खाने को नहीं है, फिर भी नाई उनके दुःख – सुःख बताने के बजाय कहता है कि प्रजा दूध भात खा रही है। मंत्री ने नाई के पीछे अपने गुप्तचर लगा दिए। गुप्तचरों से पता चला की नाई का प्रजा से कोई मतलब ही नहीं है। उसके यहाँ एक गाय है जो दूध देती है, नाई और उसका परिवार दूध भात खा कर मस्त रहते हैं। गुप्तचर की बात सुनकर मंत्री को सारा माजरा समझ में आ गया था। मंत्री ने गुप्तचर से कहा – आज रात नाई की गाय छोड़ कर ले आओ और इसकी भनक किसी को नहीं लगनी चाहिए। गुप्तचर ने ऐसा ही किया।
अगले दिन नाई राजा के दरबार में मुँह लटकाये हुए आया। राजा ने हर बार की तरह सवाल किया ” नाई प्रजा का क्या हालचाल है ?” नाई बड़े उदास स्वर में बोला “राजा राज कर रहे है प्रजा भूखों मर रही है” नाई की बात सुनकर राजा ने तुरंत मंत्रियों की बैठक बुलाई और प्रजा के बीच जाकर उनके दुःख सुख जानने के आदेश दिए।
कबीर दास जी का एक दोहा याद आता है –
जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।
आज का इंसान भी उस नाई के जैसा ही है, खुद अगर सुख से रह रहा है उसकी परिस्थिति थोड़ी अच्छी है तो उसे किसी के दुःख से कोई मतलब नहीं है। वह समझता है की दुनिया में सब कुछ सामान्य है तब तक, जबतक की उसपर कोई संकट न आ जाये।
कहानी से शिक्षा (Moral of the Story) :
- जब तक इंसान खुद दुख नहीं झेलता, तब तक वह दूसरों के दर्द को नहीं समझ सकता।
- दूसरों की पीड़ा को समझना ही सच्ची इंसानियत है।
- संवेदनशील और दयालु होना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
- आत्मसंतोष में नहीं, दूसरों के सुख-दुख में शामिल होना ही सच्चा धर्म है।

